________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
गाड़ा- १८३४
38 8
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१८६४) अह पुण अफासुओ ऊ जाणगगहिओ उ कारणे होजा जइ गीयत्था सव्वे तो धारेंती उजा जिजो (१८६५) अग्गीतविभिस्सेहिं अन्नुप्पनम्मि तं दिगिंचंति अह पुण अफासुओ ऊ कारणे गहिओ अगीतेणं (१८६६) उप्पण्णे उप्पण्णे अण्णम्मि विगिंचती ऊ सो ताहे एवं चउमंगेणं धारणता वा परिद्ववणा (१८६७) सो पुण दुविहो उवही वत्थं पातं च होड़ बोद्धव्यं वत्यं तु बहु विहाणं पाता पुण दो अणुण्णता (१८६८) चोदेती पंचन्हं किण्णवि एगो पडिग्गहो होइ
ता दो एक्केक्कस्स ऊ भण्णइ न पहुचए एवं (१८६९) तो चउ तिह दुवण्हं अहवा एक्केक्कतस्स एक्केक्कं भण्इ पाहुणगादिसु ताहे किं काहितेक्केणं (१८७०) अप्पा परो पवयणं जीवनिकाया य चत्त होतेयं वापरत्तगदितो तम्हा दो दो उ घेत्तव्या
(१८७१) भणति जदेवं तेणं जिनकप्पी एगपातओ कम्हा भण्णइ कारणमिणमो सुणसू जेणेगपादो उ (१८७२) संगहियकुच्छि जस पगहिय अप्पाहारे चियत्तदेहे य नासऽ णायाते नातिनिरुद्धे ठविय माणं (१८७३) तिवली अभिनवद्यो कंकग्गहणी य संगहियकुच्छी जोयणमवि गच्छिज्जा सन्नाडो थंडिलस्सऽसती (१८७४) जसकारि पवयणस्सा जेणाजसो होइ तं तु ण करेति पग्गहियएसणाहि य न पावि सुलभी से आहारो (१८७५ ) जदिविय हु कुच्छिपूरं लभति कदाती बहुस्स कालस्स तंपिय से विद्धंसइ तत्तकडिल्ले व जह बिंदु (१८७६) तेणऽ प्पं वहां से तो गच्छति जाव सारियं नत्थि न य बाहा उप्पञ्जति चत्तं च सरीरगं तेणं (१८७७) नासनं जाइ थंडिल्लं नावातं नियमेण उ
विच्छित्रं दूरमोगाढं सव्वदोसवियज्जियं (१८७८) निक्खिपि पडिग्गहगं बोसिरिजं नेयसो उ निल्लेवे एएण कारणं जिनकप्पिउ एगपीतो उ (१८७९) पातदुगस्स उ गहणे कारणमेतं समासओऽभिहितं अहुणा तु चोदयंती किं धेप्पइ वत्यमतिरेगं (१८८०) किं तिहि ण पहुप्पेज्ञा एक्केणाच्छादणा पकष्पम्मि गच्छेसकारणेत्तिय वोच्छेदकरो पसंगस्स
(१८८१) चोदेती कि तिन्हं गहणं ऊणेहिं जं न संथरति
भणति एक्केणावि हु संघरति पुणाह तो सूरी
For Private And Personal Use Only
।।१८६४।।
।।१८६५||
||१८६६ ||
||१८६७ ||
||१८६८॥
||१८६९ ||
||१८७०||
।। १८७१।।
||१८७२|| ★
||१८७३ ॥
।। १८७४ ।।
||१८७५॥
||१८७६ ।।
॥१८७७॥
||१८७८ ॥
||१८७९ ।।
11922011 ★
11922911
992