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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५ उद्देसो-१८ गापपहंतरंसिया वत्थं ओभासियजायति जायंतं वा सातिजति।७०।-71 (110) जे भिक्खू नायगं वा अणायगं वा उवासगं वा अनुवासगं वा परिसामझाओ उद्ववेत्ता वत्यं ओभासिय-ओभासिय जायति जायंतं वा सातिजति ७१1-72 (१३३१)जे भिक्खू वत्थणीसाए उड्दबंलं वसति वसंतं वा सातिजति।२२-73 (११२) जे भिक्खू वत्थीसाए वासावासं यसति वसंतं वा सातिजतितं सेवपाणे आवाइ चाउम्पासियं परिहारवाणं उग्पातिपं ।७३।-74 अपारसमो उद्देसो समतो. एगणवीसइमो-उद्देसो (१३) जे भिक्खू वियड किणति किणावेति कीयमाहट्ट दिञ्जमाणं पडिग्गाहेति पडिग्गहेंत या सातिजति।+1 (१३३४) जे भिक्खू वियडं पामिचेति पामिच्चावेति पापिचपाहट दिजमाणं पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंतं वा सातिञ्जति।। (१३३५) जे भिक्खू विडयं परियटेति परियडावेति परियष्ट्रियमाहट देशमाणं पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंत या सात्तिनति।। (१३३६) जे भिक्खू वियर्ड अच्छेनं अनिसिट्ठ अभिहडमाहट्ट देजमाणं पडिग्गाहेति पडिपात या सातिञ्जति।।4 (१५३५) जे मिक्खू गिलाणस्सट्टाए पर तिण्हं वियडदत्तीणं पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंतं वा सातिजति। (११३८)जे भिक्खू वियर्ड गहाय गापाणुगापंदूइजति दूइजंतं या सातिञ्जति ।। (१५३९) जे भिक्खू वियडं गालेति गालायेति गालियमाहट देजमाणं पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंतं वा सातिजति।७-7 (१४४०) जे मिक्खू चाहिं संझाहिं सज्झायं करेति करेंतं वा सात्तिनति तं जहा-पुवाए संझाए पछिमाए संज्ञाए अयरण्हे अड्ढरत्ते।। ( 11) जे भिक्खूकालियसुयस्सं परं तिण्हं पुच्छाणं पुच्छति पुच्छंतं वा सातिजति।९७ {१३४२) जे भिक्खूदिट्टिवायस्स पर सत्तण्हं पुच्छाणं पुच्छति पुच्छतं वा साति०1१०1-10 (१३३) जे भिक्खू चउसु महामहेसु सज्झायं करेति करेंत था सातिअति ति तं जहाइंदमहे खंदमहे जखमहे भूतपहे।991-11 (m) जे भिक्खु चउसु महापाडिवएसु सज्झायं करेति करेंत या सातिमति तं जहासुगिम्हयपाडिवए आसाटीपाडिदएआसोयपाडिवए कत्तियपाडिवए ।१२।-12 (१३४५)जे भिक्खूचाउकालपोरिसिं सज्झायं उदातिणावेति उवातिणावेंतं वा०1१३:14 (१६) जे भिक्खू असल्झाइए सम्झायं करेति करतं या सातिजति।१४1-15 (Gurm) जेपिक्खू अप्पणो असज्झाइयंसिसज्झायं करेति करेंतं वा सातिझति।१५।-10 (१४८) जे भिक्खू हेष्टिलाई समोसरणाई अवाएता उपरिमसुयं वाएति वाएतं वा सातिअति।१६1-17 (१३५) जे भिक्खू नय बंभराई अवाएत्ता उत्तमसुयं वाएति वाएंतं या० ११७:19 (१३५०) जे मिक्खू अपतं वाएति वाएंतं वा सातिजति ।१८1-19 For Private And Personal Use Only
SR No.009762
Book TitleAgam 34 Nisiha Chheysutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages90
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 34, & agam_nishith
File Size2 MB
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