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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निसीई - १५/१०२५ आलेवणजाएणं आलिंपित्ता वा विलिंपित्ता या तेल्लेण या पएण वा वसाए या नवणीएण वा अमंगेज वा मस्खेज वा अध्यंगेंतं वा सक्खेंतं वा सातिजति ११२१1121 (१०२६) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कार्यसि जाव नवणीएण था अमंगेत्ता वा मक्खेत्तावाअण्णयरेणंधूवणजाएगंधूवेजवापधूवेजवावेतवापधूतवासातिजति।१२२:-122 (१०२७) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो पालुकिमियं वा कुच्छिकिमियं वा अंगुलीओ निदेसिय-निवेसिय नीहरति नीहात वा सातिञ्जति।१२३)-123 (१०२८) जे भिक्खूविभूसायडियाए अप्पणो दीहाओ नह-सिहाओ कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति ।१२४-124 (१०२९) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाई जंघ-रोमाई कपेश वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति।१२५-125 (१०३०) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाई वत्यि-रोमाई कप्पेञ्ज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा सातिञ्जति।१२६1-128 (१०३१) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीह-रोमाइंकप्पेन वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा सातिञ्जति ।१२७१-127 (१०३२) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाई कक्खाण-रोमाई कप्पेन वा संठवेज या कप्तं वा संठवेतं वा सातिनति।१२८1-128 (१०३३) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाई मंसु-रोमाई कप्पेञ्ज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति।१२९।-129 (१०३४) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दंते आघंसेज वा पघंसेज वा आघंसतं वा पघंसंतं वा सातिजति।१३०1-130 (१०१५) जे भिक्खू विभूसावडियाए अपणो दंते उच्छोलेज वा पधोवेज वा उच्छोलेंत वा पधोवेंतं वासातिजति ।१३१1-131 (१०१६) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दंते फुमेज वा रएन या फुतं या रएतं वा सातिजति ।१३२/-132 (१०३७) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उठे आमझेज था पमज्जेन वा आपजंतं या पपजंतं वा सातिजति ।१३३|-133 (१०३८) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उडे संवाहेज वा पलिमद्देज वा संवाहेंतं वा पलिमदे॒तं वा सातिजति ।१३४|-134 (१०११) जे भिक्खू विभूसावडियाए अपणो उढे तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवणीएण वाअभंगेज वा मक्खेज्ज बा अभंगेतं वा मक्खेंतं वा सातिशति ।१३५/-335 (१०४०) जे भिक्खू विमूसावडियाए अप्पणो उढे लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्गेण वा उल्लोलेज या उव्यढेल वा उल्लोलेंतं वा उव्वटेतं वा सातिझति।१३६।-138 (१०४१) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उढे सीओदग-वियडेण था उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोवेज वा उच्छोलेंतं वापघोवेंतं वा सातिजति ।१३७+137 (१०४२) जे भिक्खू विमूसावडियाए अप्पणो उठे फुमेज वा रएन वा फुभेतं वा रएतं वा सातिजति।१३८1-138 For Private And Personal Use Only
SR No.009762
Book TitleAgam 34 Nisiha Chheysutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages90
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 34, & agam_nishith
File Size2 MB
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