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पका
॥१३॥
॥४॥
॥१५॥
॥१६॥
॥१७॥
॥१८॥
॥१२॥
(१३) एएसुप अडाणं पत्याणं ठाणयं च कायव्वं ।
जइप गहोऽत्यन चिठ्ठइ संझामुक्कं घजइ होइ (11) उप्पन पत्तपाणे अाणमिसया उजो होइ!
फल-पुष्फोवगुवेओ गओ विखेमेण सो एइ (१५) संभागये रविगयं विदेर सणहं विलंबिच ।
राहुहयं गहभित्रं च यजए सत नक्खते ___ अत्यमणे संझागय रविगय जहियं ठिओ उ आइयो ।
विड्ढेरमवद्दारिय सागह कूरगहठियं तु (१७) आइपिओ ऊ विलंबि राहूहयंगहि गहणं ।
मज्ञण गहोजस्स उगच्छत होइ गहभित्रं (14) संझागम्भिकलहो होइ विवाओ विलंबिनक्खते।
विड्ढेरे परविजओ आइयगए अनिवाणी (१९) जंसगहम्मि कीरइ नक्खते तत्य विग्णहो होइ।
राहुइयम्मिय मरणं गहमिन्ने लोहिउग्गालो (२०) संझागयं गहगयं आइचगयं च दुबलं रिक्खें।
संझाऽऽइश्चविमुक्कं गहमुक्कं चैव बलियाई (२१) पुस्सो हत्यो अमीईप अस्सिणी पाणी तहा।
एएसु यरिक्वेसु य पाओवगमणं करे (२२) सवणेण धणिहाई पुनव्वसूनविकरेज निक्खमणं।
सथमिसय पूसं बंपे विजारंपेपवत्तिका (२३) मिगसिर अा पुस्सो तिनि (य पुदाई मूलमस्सेसा ।
हत्यो चित्ता य तहा दस दुटिकराई नाणस्स हत्याइपंच रिक्खा पत्यस पसत्यगा विनिहिष्ठा ।
उत्तर तिनि घणिहापुनव्वसू रोहिणी पुत्सो (२५) पुनव्यसुणा पुस्सेणं सवणेण पणिहया।
एएहिं चउहि रिक्खेहि लोयकम्माणि कारए (२१) कितियाई विसाहाहि मधाईि परपीहि य ।
एएहि चाहिं रिक्वेहि लोयकम्माणि घनए (१४) तिहि उत्तराहि तह रोहिणीहिं कुश्मा उ सेहनिक्खमणं ।
सेहोवट्ठावणं कुञा अनुना गणि-वायए
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||२३-१॥
tay!
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