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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Y Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिसणं- १/३ पभूणं मंते निसढेकुमार देवाणुप्पियाणं अंतिए० पव्वइत्तए हंता पभू से एवं भंते से एवं भंते वरदत्ते अणगारे जाव भावेमाणे विहरड़ तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कयाइ बारवईओ नयरीओ जाव बहिया जणवयविहारं विहरड़ तए णं से निसते कुमारे समणोवासए जाए- अभिगयजीवाजीने जाव विहरइ तए णं से निसढे कुमारे अण्णचा कयाइ जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता जाय दम्मसंयारोवगए विहरइ तए णं तस्स निसदस्स कुमारस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेवारूवे० समुप्पचित्या- तं धरणा णं ते गामागार जाय सण्णिवेसा जत्थ णं अरहा अरिनेमी विहरइ धण्णा णं ते राईसर जाव सत्यवाहम्पभिइओ जेणं अरहं अरिनेमिं वंदंति जाव पश्र्वासंति तं जइ णं अरहा अरिट्ठनेमी पुव्वाणुपुवि घरमाणे गामाणुगामं दूइजमाणे नंदनवने विहरेजा तो णं अहं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदिया जाय पज्जुवासिज्जा तए णं अरहा अरिनेमी निसढस्स कुमारस्स अयमेयारूवं अज्झत्थियं जाव वियामित्ता अट्ठारसहिं समणसहस्सेहिं जाद नंदनवने उज्जाणे समोसढे परिसा निग्गया तए णं निसटेकुमारे इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हडतुडे चाउरघंटेणं आसरहेणं निग्गए जहा जमाली जावं अम्मापियरो आपुच्छित्ता पब्वइए अणगारे जाए - इरियासमिए जाब गुत्तगंभयारी तए णं से निसढे अणगारे अरहओ अरिट्ठनेमिस्स तहारूवाणं राणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारसं अंगाई अहिज्जइ अहिजिता बहूहिं चउत्यं जाव भावेमाणे बहुपडिनाई नव वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ पाउणित्ता बायालीसं भत्ताइं अणसणाए छेएइ आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते आणुपुब्बीए कालगए तए णं से वरदत्ते अणगारे निसढं अणगारं कालयं जाणित्ता जेणेव अरहा अरिद्वनेमी तेणेव उवागच्छइ उयागच्छित्ता जाव एवं वयासी एवं खलु देवाणुपियाणं अंतेवासी निसढे नामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए से णं भंते निसढे अणगारे काल मासे कालं किच्चा कहिं गए कहिं उववणे, वरदत्ता० सब्बट्ठसिद्धे वीमाणे देवत्ताए उववण्णे तत्थ णं० निसढस्स देवस्स तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता से णं मंते निसढे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव अनंतरं चयं चइत्ता० इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे यास उण्णाए नयरे विसुद्धपिइमाइवंसे रायकुले पुत्तत्ताए पञ्चायाहिद से णं उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमेते जोव्वणगमणुष्पत्ते तहारूयाणं घेराणं अंतिए केवलबोहिं बुज्झिहि बुज्झिहित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जिहिइ से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ- इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी से णं तत्थ बहूहिं० विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूइं झूसेत्ता सद्धिं मत्ताइं अणसणाए छेदेहि जस्सङ्काए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अगोवाहणए फलहसेज कट्ठसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरवेसे पिंडवओ लगावलद्धे उच्चावया गामकंटगा अहियासिद्धंति तम आराहेहिति आराहेत्ता चरिमेहिं उस्सासनिस्साहेहिं जाय सव्वदुक्खाणं अंतं काहिइ एवं खलु जंबू समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं निखेयओ० ।१-२। [ ३०-२]-1-1 २०१२ - अझयणाणि (४) एवं सेसावि एक्किारस अज्झयणा नैयब्वा संगहणीअणुसारेणं एवं अहीण मइरितं एक्कारससुवित्तियेमि |१| [३०] - 1 २३ वहिदसाणं समत्तं बारसमं उवंगं समत्तं For Private And Personal Use Only
SR No.009749
Book TitleAgam 23 Vanhidasanam Uvangsutt 12 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages14
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 23, & agam_vrushnidasha
File Size1 MB
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