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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मझायण-३ (६) सकयं यक्कलं ठाणं सेञ्जमंडे कमंडलुं पंडदारु तहप्पाणं अहे ताई समादहे ॥२॥ [|३||-2 (७) महुणा य धएणं य तंदुलेहि य अग्गि हुणइ चरं साहेइ साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ करेत्ता अतिहियपूर्व करेइ करेत्ता तओपच्छा अप्पणा आहारं आहारेइंतएणसे सोमिले माहणरिसी दोनछडकखमणपारणगंसि तं चैव सव्वं माणियलं आहारं आहारेइ तए णं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स अण्णया कयाइ पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि अणियजागरियं जागरमाणस्स जाव समुप्पजित्था-एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सोमिले नामं माहणरिसी अचंतमाहणकुलप्पसूए तए णं मए वयाई चिण्णाईजावजूवा निक्खित्ता तएणं मए वाणारसीए जाव पुष्फारामा य रोवाविया तए णं मए सुवहुं लोए कडाहकडुच्छुयं तंबियं तावसमंडं धडादेत्ता विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उदक्खडावेत्ता जाव जेठ्ठपुत्तं कुटुंबे ठवेत्ता जाव जेठ्ठपुत्तं आपुच्छिता सुबहुं लोह जाव घडावेत्ता पव्वइए पव्वइए वियणं समाणे छटुंछट्टेणं जाव विहरिए तं सेयं खलु ममंइयाणि कालं पाउप्पभाए रपणीए जाव उहियप्पि सूरे सहसरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते बहवे तावसे दिटुपट्टे य पुव्वसंगइए य परियायसंगइए य आपुच्छित्ता आसमसंसियाणि य बहूई सत्तसयाई अणुमाणइत्ता वागलवत्थनियत्तस्स किढिण-संकाइय-गहितग्निहोत-संमंडो-वगरणस्स कडमुहाए मुहं बंधित्तउतरदिसाए उत्तराभिमुहस्स महप्पत्थाणं पत्थाइत्तए-एवं संपेहेइ संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव कट्ठपदाए मुहं बंधड़ बंधित्ता अयमेयारूवं अभिग्गरं अभिगिण्हइ-जत्येव णं अहं जलंसि वा धलंसि वा दुग्गंसि या निसि वा पव्वयंसि वा विसमंसि वा गड्डाए या दरीए वा पक्खलेज्ज वा पवडेज वा नो खलु मे कप्पइ पन्चुडित्तएत्तिक अयमेयारूवे अभिग्गहं अभिगिण्हइ उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे महप्पत्याणं पत्थिए तए णं से सोमिले माहणरिसी पञ्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागए असोगयर- पायवस्स अहे किढिय-संकाइयं ठवेइ ठवेत्ता वेदि वड्ढेइ वड्ढेत्ता उयलेवण-संमञ्जणं करेइकोत्ता दमकलसहत्यगएजेणेव गंगा महानई जहा सिवो जाव गंगाओ महानईओ पछुत्ताइ पचुतरित्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेय उयागच्छा उवागच्छित्ता दब्बेहि य कुसेहि य यालुयाए य वेदि रएइ रएत्ता सरगं करेइ करेत्ता जाव पलिं वहस्सदेवं करेइ करेत्ता कट्टमुद्दाए मुहं बंधइ बंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ तए णं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स पुन्बरतावरत्तकालसमयसि एगे देवे अंतियं पाउलए तएणं से देवे सोमिलं माहणं एवं ययासी-हंमोसोमिलमाइणा पव्वइया दुप्पव्वइयं ते तएणं से सोमिले तस्स देवस्स दोग्यपि तचंपि एयमटुं नो आढाइ नो परिजाणइ जाव तुसिणीए संचिट्ठइ तए णं से देवे सोमिलेणं पाहणरिसिणा अणाढाइजमाणे जामेव दिसि पाउन्मूए तामेय दिसि पडिगए तएणं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्दिम्मि सूरे सहस्सरसिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते वागलवत्यनियत्ये किढिण-संकाइय-गहियग्निहोत्त-मंडोवगरणे कठ्ठमुहाए मुहं बंधइ बंधित्ता उत्तराभिमुहे संपत्थिए तए णं से सोमिले बिइयदिवसम्मि पञ्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव सत्तिवपणे तेणेय उवगाए सत्तियण्णस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेइ ठवेत्ता वेदि वड्डेइ जहा असोगवरपायवे जाव उग्गिं हुणइ कट्ठमुद्दाए मुहं बंदइ तुससिणीए संचिटिइतएणं तस्स सोमिलस्स पुवात्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्यूए तए णं से देवे अंतलिखपडिवण्णे जहा असोगवरपायवे जाव पडिगए तएणं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए जाच उत्तराभिमुहे संपत्थिए तए णं से सोमिले तइयदिवसम्मि पन्ना For Private And Personal Use Only
SR No.009747
Book TitleAgam 21 Puffiyanam Uvangsutt 10 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages22
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 21, & agam_pushpika
File Size1 MB
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