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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ जंबूदीव पन्नत्ती-३/१२ पिंगलंगुली नाणामणिकणगविमल महरिह-निउणोवियमिसिमिसेंत विरइयसुसिलिट्ठवि- सिठ्ठलइटिय-सत्य आविद्धवीर वलए किं बहुना कप्परुक्खए चेव अलंकियविभूसिए नरिदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे मंगलजयसद्दकयालोए अणेग- गणनायगदंडनायम- राईसर - तलवर - माडंबिय कोडुंबिय मंति- महामंति- गणग-दोवारिप- अमद्य-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-सेहि- सेणावइ- सत्यवाह दूय-संघियालसद्धिं संपरिवुडे धवल - महामेहणिग्गए इव गहगण-दिप्यंत रिक्ख-तारागणाण मज्झे ससिव्य पियदंसणे नरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव आदंसधरे जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता सीहासणवार गए पुरत्याभिमुहे नीसीयइ निसीइत्ता आदंसघरंसि अत्ताणं देहमाणे- देहमाणे चिट्ठइ तए णं तस्स भरहस्स रणो सुमेणं परिणामेणं पसत्येहिं अज्झवसाणेहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं-विसुज्झमाणीहिं ईहापोह-मग्गण - गवसणं करेमाणस्स तयावरिजाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुव्यकरणं पविट्ठस्स अनंते अनुत्तरे कसिणे पडिपुत्रे निव्वाषाए निरावरणे केवलवरनाणदंसणे सपुष्पत्रे तए णं से भरहे केवली सयमेवाभरणालंकारं ओमुयइ ओमुक्त्ता सयमेव पंचमुदृष्ठियं लोयं करेइ करेत्ता आदंसघार ओ पडिणिक्खमइ पडिणिकूखमित्ता अंतेउरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छ निग्गच्छित्ता दसहि रायवरसहस्सेहिं सद्धिं संपरिवुडे विणीयं रायहाणि मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरइ विहरित्ता जेणेव अट्ठावए पव्वते तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अट्ठावयं पच्चयं सणियं-सणियं दुरुहइ दुरुहित्ता मेघघणसण्णिमगसं देवसण्णिवायं पुढविसिलापट्टगं पडिलेहेई पडिलेहेत्ता संतेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पायोदगए कालं अणवकंखमाणेअणवकखमाणे विहरइ तए णं से भरहे केवली सत्तत्तरिं पुव्वसयसहस्साई कुमारवास मज्झावसित्ता एवं वाससहस्सं मंडलियरायमज्झावसित्ता छ पुव्वसयसहस्साई बाससहस्सूणगाई महारयमज्झावसित्ता तेसीइं पुव्वसयसहस्साई अगारवासमञ्झावसित्ता एवं पुव्वसय सहस्सं देसूणगं केवलिपरिवार्य पाउगित्ता तमेव बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता मासिएणं मत्तेणं अपाणएणं सवगेणं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं खीणे वेणजे आए नामे गोए कालगए वीइक्कंते समुञ्जाए छिण्णजाइज राणणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिणिब्बुडे अंतगडे सव्वदुकखप्पहीणे 1991-70 (१२६) भरहे य एत्य देवे महिड्ढीए [महजुईए महाबले महायसे महासोक्खे! महाणुभागे पनिओवपट्ठिईए परिवसइ से एएणद्वेणं गोयमा एवं बुच्चइ-भरहे वासे भरहे वाले अदुत्तरं च णं गोयमा भरहस्स वासस्स सासए नामघेज्जे जं न कयाण न आसि न कयाइ नत्यि न कयाइ न भविस्सइ भुवि चभवइ य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अव्यए अवट्ठिए निचे भरहे वासे 1७२1-71 • तडुओ वक्खारो समत्तो • -: च उ त्यो-व क्खा रो : (१२७) कहि णं भंते जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते नामं वासहरपव्वए पत्रत्ते गोयमा हेमबयस्स यासस्स दाहिणेणं भरहस्स यासस्स उत्तरेणं पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पद्यत्थिमेणं पचत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं एत्य णं जंबुद्दीवे दीये चुल्लहिमवंते नामं वासहरपव्यए पत्रत्ते- पाईणपडीणायए उदीर्णदाहिणविच्छिणे दुहा लवणसमुदं पुट्ठे-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्दे पुढे पञ्चत्थिमिल्लाए कोडीए पञ्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दे पुढे एगं जोयणसवं उडूढं उच्चत्तेणं पणवीसं जोय For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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