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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संबुदीव पन्नाती-1/७५ पाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं सामी तहति आणाए विणएणं वरणं पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता भरहस्स रपणो आवसहं पोसहसालं च करेइ करेत्ता एयमाणतियं खिप्पामेव पञ्चप्पिणति तएणं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पोसहसालं अनुपदिसइ अनुपविसित्ता पोसहसालं पमआइपमनित्ता दब्मसंथारगं संथरइ संथरिता दध्मसंथारगंदुरुहइ दुरिहिता] कयमालस्स देवस्स अट्ठममत्तं पगिण्हइपगिहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे वयगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्यमुसले दमसंथारोवगए अहममतिए कयमालगं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अनुममत्तंसि परिणममाणसि कयमालस्स देवस्स आसणं चलइ तहेव जाव वेयड्दगिरिकुमारस्स नवरं-पीइदाणं-इत्थीरयणस्स तिलग-चोदसं-मंडालंकार कडगाणि प तुडियाणि य वत्याणि य] आमरणाणि य गेहइ गेण्हित्ता ताए उकिकट्ठाए तरियाए जाव इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छा पडिच्छिता कयमालं देयं तककारेइ सम्भाणेइ सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविस इतए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ताजेणेव मङ्गणघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिताणहाए कयबलिकम्मे जाव जेणेव मोयणमंडवे तेणेव उयागच्छइउवागत्तिा भोयणमंडसिसुहासणवरगए अट्टममत्तंपारेइपारेत्ता मोयणमंडयाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव घाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे निसीयइ निसीइत्ता अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया अट्ठाहियं महामहिमं करेह करेत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ मरहेणं रपणा एवं युत्ताओ समाणीओहठ्ठ जाव अठ्ठाहियं महामहिमं करेंति कोतातभाणत्तियं पञ्चप्पिणंति।५१।-51 (७५) तए णं से भरहे राया कयमालस्स देवस्स अट्टाहियाए महामहिमाए निव्यताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ सद्दावेत्ताएवं वयासी-गच्छाहि गंभो देवाणुप्पिया सिंधूए महानइ'ए पद्यथिमिल्लं निक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि प ओयवेहि ओयवेत्ता आगाइयराइंरयणाई पडिच्छाहिं पडिच्छित्ताममेयमाणत्तियं पञ्चप्पिणाहि ततेणसे सेणावई बलस्स नेया भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुमासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निण्णाणं य दुग्गमाण यदुक्खप्पघेसाणं य विवाणए अत्यसत्यकुसले रयणं सेणावई सुसेणे भरहेणं रण्णा एवं दुत्ते समाणे हहतुइ[वित्तमाणदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए] करयलपरिग्गहियं दसण्हं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं सामी तहति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ पहिसुणेता परहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ताजेणेव सए आवासे तेणेव उवागच्छइ उवागछिता कोडुंबियपुरिसे सदावेइ सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया आभिसेक्कं हत्यिरपणं पडिकप्पेह हय-गय-रह-पवर-जोहकलियं चाउरंगिणिं सेण्णं सण्णाहेतिकटु जेणेय मजणघरे तेणेव उवागच्छइ उदागच्छित्ता माणघरं अनुपविसइ अनुपविसित्ता पहाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायहिछत्ते सनद्धबद्धवम्मिय-कवए उपीलियसरासणपट्टिए पिणडगेवेन-बद्धआविद्धविमलवरचिंद्धपट्टे गहियाउहप्पहरणे अनेगगणनायगदंडनायग- [राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुखिय-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमञ्च-चेड-पीट For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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