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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंबुद्दीव पन्नती-२/५५ वासुदेवा समुप्पजिसति तीसे णं समाए सागरोवमकोडाकोडीए वायलीसाए वाससहस्सेहि ऊणियाए काले वीइक्कते अनंतेहिं वण्णपञ्जवेहि जाव अनंतगुणपरिवड्ढीए परिषड्ढेमाणेपरिवड्डेमाणे एत्य णं सुसमदूसमाणामं समा काले पडियनिस्सइ समणाउसो सा गं समा तिहा विभजिस्सइतं जहा-पढमेतिभागे पन्झिमे तिभागे पच्छिमे तिभागे तीसेणं मंते समाए पढमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ गोयमा बहुसमरमणिज्जे [भूमिभागे मविस्सइ से जहाणामए आलिंग-पुक्खरेइ वा जाव नानाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं तणेहि य उवसोमिएतं जहा-कित्तिमेहिं चैव अकित्तिमेहिं चैव तीसेणंभंते समाए पढमे तिभागे भरहे यासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ गोयमा तेसिं मणुयाणं छव्यिहे संघयणे छबिहे संठाणे बहुणि घणुसयाणि उद्धं उच्चत्तेणं जाहण्णेणं संखेचाणि वासाणि उक्कोसेणं असंखेझाणि वासाणि आउयं पालेहिति पालेता अप्पेगइयानिरवगामी जाव करेहिति) तीसे णं समाए पढमे तिभाए रायधम्मे जायतेए धम्मचरणे य वोच्छिजिस्सइ तीसे णं समाए मज्झिम-पच्छिमेसु तिमागेसु[परहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ गोयमा बहुसमरमणिले भूमिभागे भविस्सइ सो चेव गपो नेयव्यो नाणत्तं-दो धणुसहस्साई उड् उच्चतेणं तेर्सि च मणुयाणं चउसद्वि पिट्टिकरडंगा चउत्यभत्तस्स आहारत्ये समुप्पग्निस्सइ ठिई पलिओवमं एगूणासीईराइंदियाइं सारक्खिस्संति संगोवेस्संति जाव देवलोगपरिग्गहिया गं ते मणुया पन्नत्ता समणाउसो तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहि काले वीइकूकंते अनंतेहिं वण्णपनवेहिं जावपरिवड्ढेमाणे एत्थ णं सुसमाणामं समा काले पडियनिस्सइ समणाउसो जंबुद्दीवे णं मंते दीदे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वास्स केरिसए आगारभावपडीयारे भयिस्सइ गोयमा बहुसमरपणिग्ने भूमिमागे मविस्सइ से जहानामए आलिंगपुक्खोइ वा तं चेवजं सुसमसुप्तसाए पुनवणियं नवरंनाणत्तं चउथ- णुसहस्समूसिया एगे अट्ठावीसे पिद्धिकरंडुकसए छट्ठभत्तस्स आहारट्टे चउसदि राइंदियाइं सारखिस्संति दो पलिओयमाई आऊ सेसं तं चेव तीसे णं समाए चउचिहा मणुस्सा अनुसलिस्संति तं जहा-एका पउरजंधा कुसमा सुतमणा तीसे णं समाए तिहिं सागरोवमकोडाकडिहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपनवेहिं जाव परिवड्ढमाणे एत्थ णं सुसमसुसमाणामं समा काले पडिवजिस्सइ समणाउसो जंबुद्दीवेणभंते दीवे भरहे वासे इमीसे उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए परहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ गोयमा बहुसमरमणिग्ने भूमिमागे भविस्सइ जे जहानामए आलिंगपुखरेइ वा जाव नानाविहपंचवण्णेहि मणीहि तणेहि य उवसोभिए तं जहा-किण्हेहिं जाव सुक्किलेहि तहेव जाव छबिहा मणुस्सा अनुसज्जिस्संति[तंजहा-पम्हगंधा मियगंधा अममा तेतली सहा सणिचारी।४११-40 बीओ बक्खारो सपत्तो. -: त इ ओ- क्खा रो :(५४) से केपट्टेणं मंते एवं दुच्चइ- मरहे वासे मरहे वासे गोयमा मरहे गं वासे येयड्ढस्स पव्वपस्स दाहिणेणं चोद्दसुत्तरं जोयणसयं एगारस य एगूणवीसइभाए जोयणप्स अवाहाए लवणसपुदस्स उत्तरेणं चोद्दसुत्तरं जोयणसयं एगारस य एगूणवीसइपाए जोयणस्स अवाहाए गंगाए महानईए पञ्चत्यिमेणं सिंधूए महानईए पुरथिमेणंदाहिणड्ढभरहमझिल्लतिभागस्स वहुमज्झदेसपाए एत्यणं विणीया नामं रायहाणीपवत्ता-पाईणपडीणायया उदीणदाहिणविच्छिण्णा दुवालसजोयणायामा नवजोयणविच्छिण्णा घणवइमति-निप्पया चामीकरपागारा नानामणिपंच For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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