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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यखा-२ नह-दंतवेयणाइ वा कासाइ वा सासाइ यासोसाइ वा जराइघादाहाइ वा अरिसाइ वा अजीरगाइ वा ६ओदराइधा पंडुरोगाइवा भगंदराइ या एमाहियाइघा बेयाहियाइ वा तेयाहियाइ या चउत्याहियाइ वा धणुग्गहाइ वा इंदगहाइ वा खंदग्गहाइ वा कुमारग्गहाइ वा जखगहाइ वा मत्थगसूलाइ या हिययसूलाइ यापोट कुच्छि-जोणिसूलाइदा गाममारीइवाजावसण्णिायेसमारीइवापाणक्खयजणखया कुलक्खया वसणब्यूयमणारिआ नो इणढे समढे ववगयरोगायंकाणं तेमणुया०।२५1-24 (३८) तीसे णं समाए भारहे यासे मणुयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नता गोयमा जहण्णेणं देसूणाई तिष्णि पलिओवमाइं उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाई तीसेणं समाए भरहे चासे मयुयाणं सरीरा केवइयं उच्चत्तेणं, गोयमा जहण्णेणं देसूणाई तिष्णि गाउयाई ते णं भंते मणुया कि संघयणी, वइरोसभनारायसंघयणी पन्नत्ता तेसिणं भंते मणुयाणं सरीरा किसंठिया गोयमा समचउरंससंठाणसंठिया पत्रत्ता तैसि णं मणुयाणं बेछप्पणा पिष्टिकरंडासया पत्रत्ता समणाउसो ते णं भंते मणुया कालमासे कालं किच्चा कर्हि गछंति कहिं उपवनंति गोयमा छम्मासायसेसाउया जयलगं पसर्वति एगूणवण्णं राइंदियाई सारक्खंति संगोति सारविक्खत्ता संगोवेत्ता कासिता छीइत्ता जंभाइत्ता उकिकट्ठा अव्वहिया अपरिताविया कालमासे कालं किच्चा देवलोएसु उववजंति देवलोगपरिग्गहा णं ते मणुया पन्नत्ता समणाउसो तीसे णं समाए मरहे वासे कइविहा मणुस्सा अणुसज्जित्था गोयमा छविहा तंजहा-पाहगंधा मियगंधा अममा तेतली सहा सणिचारी।२६।-25 (३९) तीसे णं समाए चउहि सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइकूकंते अनंतेर्हि वण्णपनवेहिं जाव अनंतेहि फासपनवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहि अनंतेहि संठाणपज्जवेहिं अनंतेहि उछत्तपञवेहिं अनंतेहि आउपनवेहिं अनंतेहिं गरुयलयपनवेहि अनंतेहि अगरुलयपनवेहि अनंतेहि उट्ठाण-कप्म-बल-वीरिय-पुरिसककार-परक्कमपञ्जयेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे एत्यणंसुसमा नाम समा काले पडिवनिंसु समणाउसोजंबुद्दीदेणंभंते दीवे इमीसे ओसप्पिणीए समाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए मरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्या गोयमा बहुसपरमणिग्ने भूमिमागे होत्या से जहानापए आलिंगपुक्खोइ वा तं चेव जं सुसमसुसमाए पुव्ववणियं नवरं-नाणतं चउधणुसहस्समूसिया एगे अट्ठावीसे पिट्टिकरंडुकसए पहभत्तस्स आहारटे घउसद्धिं राइंदियाई सारखंति दो पलिओयमाई आऊ सेसं तं चेय तीसे णं समाए चउब्विहा मणुस्सा अनुसज्जित्था तं जहा-एका पउरजंघा कुसुमासुसमणा ।२७1-26 (४०) तीसेणं समाए तिहिंसागरोवमकोडाकोडीहिंकाले यीइक्कंते अनंतेहिं यण्णपज्जवेहि जाव अनंतगणे परिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे एत्य णं सुसमदुस्समा नाम समा काले पहिवजिस समणाउसो साणं समा तिहा बिपञ्जइ-पढमे तिपाए मज्झिमे तिभाए पच्छिमे तिभाए जंबुद्दीवेणं भंते दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमदुस्समाए समाए पढममज्झिमेसु तिभाएसु मरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्या गोयमा बहुसमरणिजे भूमिमागे होत्या सो चेव गमो नेयव्यो नाणत्तं-दो धणुसहस्साई उड्दं उछत्तेणं तेसिं य मणुयाणंचउसहि पिट्टिकरंडुगा वउत्यभत्तस्स आहारत्ये समुपज्जइ ठिई पलिओवमं एगूणावीसई राइंदियाइं सारखंति संगोवेति जाव देवलोगपरिगहिया णं ते मणुया पत्रत्ता समणाउसो तीसे णं मंते समाए पच्छिमे तिमाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारमावपडोयारे होत्या गोयमा बहुसमरमणिन्ने भूमिमागे होत्था से जहाणामाए आलिंगपुस्खरेइ या जाव नाणायिह पंचवण्णेहि पणीहि तणेहि य उपसोभिए तंजहा-कित्तिमेहिं वेव For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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