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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंदपन्नती - ६/-19 दिवसे पवइ जहणिया दुवालसमुहत्ता राती भवति एस णं दोछे छम्मासे एसणं दोबस्सछम्मासस्स पजवसाणे एसणं आदिचे संवच्छरे एसणं आदिधस्स सेयच्छास्स पावसाणे।२७1-27 .छद्रं पाहुई समतं. सत्तमं पाहुडं (४२) ता के ते सूरियं वरयति आहिताति वएजा तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ तत्थेगे एवमासु-ता मंदरेण पव्यए सूरियं वरयति आहितेति वएजा-एगे पुण एवमाहंसुता मेरुणपव्यए सूरियं वरयति आहितेति वएज्जा-एवं एएणं अभिलावणं नेयव्वं जाव पव्ययराएणं पव्यए सूरिवं वरयति आहहितेति वएजा-वयं पुणं एवं वदामो-ता मंदिरेवि पवुच्चइ तहेव जाव पव्ययराएवि पवुइ ताजे णं पोग्गला सूरियस्स लेसंफुसंति ते णं पोग्गला सूरियं वरयंति अदिट्ठावि णंपोग्गला सूरियं वरयंति चरमलेसंतरगताविण पोग्गला सूरियं वरयंति 1२८:28 तत्तपंपाउं समतं. | अट्ठमं पाहुई| (४३) ता कहं ते उदयसंठिती आहितेति वएना तस्थ खलु इमाओ तिणि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओतत्येगे एवमाहसु-ता जया णं जंबुद्दीवेदीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तयाणं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तथा णं दाहिणड्डेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ ता जया णं जवुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तयाणं उत्तरड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ ताजयाणंउत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तयाणं दाहिणड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ एवं परिहावेत्तव्वं-सोलसमुहते दिवसे पन्नरसमुहत्ते दिवसे घउद्दसमुहत्ते दिवसे तेरसमुहत्ते दिवसे जाव ता जया गं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्डेवि वारसमुहुत्ते दिवसे भवइ ता जया णं उत्तरड्ढे वारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तयाणं दाहिणड्डेवि बारसमुहत्ते दिवसे भवइ ताजयाणं दाहिणड्ढे बारसमुहत्ते दिवसे भवइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्बयस्स पुरस्थिमपञ्चस्थिमे णं सदा पनरसमुहुत्ते दिवसे भवइ सदा पन्नरसमहत्ता राती मदति अवडिया णं तत्य राईदिया पत्रत्ता समणाउसो एगे एवमाहंसु एगे पुण एवमाहंसु-ता जयाणं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे मवइ तया णं उत्तरड्डेयि अट्ठारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहत्ताणंतरे दिवसे मवइ तया ण दाहिणड्डेवि अद्वारसमुहुताणंतरे दिदसे भवइ एवं परिहावेतव्यं सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ सोलसमुहत्ताणंतरे दिवसे मवइ पत्ररसमुहत्ताणंतरे दिवसे मवइ चोद्दसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवई तेरसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवई तया णं उत्तरडेवि बारसमुहत्ताणंतरे दिवसे पवइ ता जया णं उत्तरढे वारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तयाणं जंबुद्दीये दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमपञ्चस्थिमे णं नो सदा पत्ररसमुहत्ते दिवसे मदद नो सदा पत्ररसमुहता राती भवति अणवहिता णं तत्य राइंदिया पत्नत्ता समणाउसो एगे पुण एवमाहंसु-ता जया णं जंबुद्दीवे दीये दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहत्ते दिवसे पवइ तया णं उत्ताड्ढे दुवालसमुहुत्ता राती मवति ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढे दुवालसमुहुत्ता राती भवती ता जया णं For Private And Personal Use Only
SR No.009743
Book TitleAgam 17 Chandpannatti Uvangsutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 17, & agam_chandrapragnapti
File Size2 MB
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