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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ पन्नवणा-१५/१/-४२८ ॥२०४||-1 |२०५/1-2 फुडेसियनोफुडेअद्धासमएणंदेसेपुडेदेसेनोफुडे,जंबुद्दीवेणं मंतेदीवेकिणाफुडेकतिहिं वाकाएहिं फुडे-किंधम्मस्थिकाएपंजावआगासत्थिकाएणंफुडेगोयमानोधम्मत्यिकाएणंफुडेधम्मत्थिकायस्स देसेणं फुडे धम्मत्येिकायस्स पएसेहिं फुडे एवं अधम्मत्यिकायस्स वि आगासत्यिकायस्स वि पुढविकाइएणंफुडेजाववणप्फइकाएणंफुडे, तसकाएणंसियफुडे सियनो फुड़े अद्धासमएणं फुडे, एवं लवणसमुद्दे घायइसंडेदीवे कालोएसमुद्दे अभितरपुक्खारद्धे बाहिरपुक्खरद्ध एवं चेव नवरंअद्धासमएणंनोफुडे सयंभुरमणे समुद्दे एसा परिवाडीइमाहिगाहाहिं।१९८-११-198-1 (४२९) जंबुद्दीवे लवणे धायइ कालोय पुरखरे वरुणे खीर घत खोत नंदिय अरुणवरे कुंडले रुपए (४३०) आमरण-वत्थ-गंध उप्पल-तिलए यपुढवि-निहि-यणे वासहर-दह-नदीओ विजया वखार-कप्पिंदा (४३१) कुरु-मंदर-आवासा कूड़ा नक्खत्त-चंद सूराय देवे नागे जक्खे भूएय सयंभुरमणे य ॥२०६॥ (४३२) एवं जहा बाहिरपुक्खरर्द्ध मणितं तहा जाव सयंमुरमणे समुद्दे जाव अद्धासमएणं नोफुडे लोगे णं भंते किणा फुडे कतिहिं वा काएहि पुच्छा गोयमा नो धम्मस्थिकारणं फुडे जाव नो आगासस्थिकारणं फुडे आगासस्थिकायस्स देसेणं फुडे आगासत्थिकायस्स पदेसेहिं फुडे नो पुढविक्काइएणं फुडे जाव नो अद्धासमएणं फुडे एगे अजीयदबदेसे अगरुलहुए अनंतेहिं अगरुलहुयगुणेहिं संजुत्तेसव्वागासे अनंतभागूणे ।१९८1-198 पनरसमेपये-पटमो उद्दसओ समतो. - बी ओ उद्दे सो :(४३३) इंदिय-उवचय निव्वत्तणा य समया पवे असंखेज्जा लद्धी उयओगद्धा अप्पाबहुए विसेसाहिया (४३४) ओगाहणा अवाए ईहा तह घंजणोग्गहे चेव दबिंदिय मार्विदिय तीया बखा पुरेक्खडिया |१२०८|-2 (४३५) कतिविहे णं मंते इंदिओवचए पन्नत्ते गोयमा पंचविहे इंदिओवचए पत्रत्ते तं जहासोइंदिओवचए चक्खिदिओवचए पाणिदिओवचए जिबिदिओवचए फासिंदिओवचए नेरइयाण भंते पुच्छा गोयमा पंचविहे इंदिओवचए पन्नत्ते तं जहा-सोइंदिओवचए जाव फासिंदिओवचए एवं जाव वैमाणियाणं जस्स जइ इंदिया तस्स तइविहोचेव इंदिओवचयो भाणिपन्दो, कतिविहाणं मंते इंदियनिव्वत्तणा पत्रत्ता गोयमा पंचविहा इंदियनिच्चतणा प० सोइंदियनिव्वत्तणाजावफार्सिदियनिव्वत्तणा एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं नवरं जस्स जतिंदिया अत्यि, सोइंदियनिव्वत्तणा णं भंते कतिसमइया पत्रत्ता गोयमा असंखिजसमइया अंतोमुहत्तिया पन्नता एवं जाव फासिंदियनिव्वत्तणा एवं नेरइयाणं जाव येमाणियाणं, कतिविहा णं मंते इंदियलद्धी पन्नत्ता गोयमा पंचविहा इंदियलद्धी प० सोइंदियलद्धी जाव फासिदियलद्धी एवं नेरइयरणं जाव येमाणियाणं नवरं जस्स जति इंदिया अस्थि तस्स तावतिया लद्धी माणियब्या, कतिविहाणं मंते इंदियउवओगद्धा पत्ता गोयपा पंचविहा इंदियउवओगद्धा पत्रत्ता तंजहा-सोइंदियउवओगद्धाजाव फासिदियउवओगद्धा एवं नेरइयाणंजाव वेमाणियाणं नवां-जस्स जति इंदिया अत्यि एतेसि णं भंते सोइंदिय-जाव फासिंदियाणं जहणियाए उवओगद्धाए उक्कोसियाए ||२०७||-1 For Private And Personal Use Only
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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