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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandin पडिवत्ति-१ तिरिक्खजोणिया।३६।-35 (४४) से किं तं थलयरसमुच्छिमपंचेदियतिरिक्खजोणिया थलयरसमुच्छिमपंचेदियतिरिखजोणिया दुविहा पन्नत्ता तं जहा-चउप्पयथलयरसमुछिमपंचेदियतिरिक्खजोणिया परिसप्पसमुच्छिमपंचाँदेयतिरिक्खजोणिया से किं तं चउप्पयथलयरसमुच्छिमपंचेदियतिरिक्खजोणिया चउप्पयथलयरसमुछिमपंचेदियतिरिक्खजोणिया चरच्चिहा पन्नत्ता तं जहा-एगघुरा दुखुरा गंडीपया सणफया जाब जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पन्नत्ता तं जहा-पन्जतगा य अपनत्तगा य तओ सरीरंगा ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेनइभागं उक्कोसेणं गाउयपुहतं टिती जहनेणं अंतोमुत्तं उकूकोसेणं चउरासीइयाससहस्साइं सेसं जहा जलयराणं जाव चळगतिया दुआगतिया परित्ता असंखेजा पत्रत्ता सेत्तं चउप्पयथलयरसमुच्छिमपंचेदियतिरिक्खिजोणिचा से किं तं धलयरपरिसप्पसमुच्छिमा थलयरपरिसप्पसंमुच्छिमा दुविहा पन्नत्ता तं जहाउरपरिसप्प- संमुच्छिमा भुयपरिसप्पसमुच्छिमा से किं तं उरपरिसप्पसमुच्छिमा उरपरिसप्पत. मुच्छिमा चउब्बिहा पत्रता तं जहा-अही अयगरा आसालिया महोरगा से किं तं अही, अही दुविहा पन्नत्ता तं जहा-दव्वीकरा य मरलिणो य से किं तं दच्चीकरा दब्बीकरा अनेगविहा पन्नत्ता तंजहाआसिविसा जाब सेत्तं दच्चीकरा से कि तं मजलिणो मउलिणो अनेगविहा पत्रत्ता तंजहा-दिव्या गोणसा जाव से तं परलिणो सेत्तं अही से किं तं अयगरा अवगरा एगागारा पन्नत्ता से तं अयगरा से किंतं आसालिया आसालिवाजहापत्रवणाए से कि तं महोरगा [महोरगा जहा पन्नवणाए से तं महोरगा] जे यावरणे तहप्यगारा ते समासओ दुविहा पत्रत्ता तं जहा-पजत्तगा य अपनत्तगा य तं चेव नवरि-सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं जोयणपुहत्तं ठिती जहन्नणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तेवणं वाससह- स्साई सेसं जहा जलयराणं जाब चउगतिया दुआगतिया परित्ता असंखेजा से तं उरपरिसप्पा से किं तं भुवयरिसप्प- संपुछिमधलयरा भुवपरिसप्पसमुच्छिमधलवरा अनेगविहा पात्रता तं जहा-गोहा नउला जायजे चावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पत्रत्ता तं जहा-पञ्जत्तगा प अपनत्तगा य सरीरोगाहणा जहनेणं अंगुलस्स असंखेनइभागं उक्कोसेणं धणुपुहत्तं टिती उकोसेणं याया- लीसं वासराहस्साई सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया दुआगतिया परित्ता असंखेजा पत्रत्ता से तं भुयपरिसप्पसमुच्छिमा से तं धलयरा, से किं तं खहयरा खहवरा वडब्बिहा पत्रता तं जहा-चप्प-पक्खो लोमपक्खी समुगपक्सी विततपक्खी से किंतं चम्मपक्खी चम्मएक्खी अनेगविहा पन्नत्ता तं जहा-वगुली जाव जे यावण्णे तहप्पगारा से तं चम्मपस्वी, से किं तं लोमपक्खो लोमपक्खी अनेगविहा पनत्ता तं जहा-ढंका जाव जे यावण्णे तहप्पगारा से तं लोपपक्खी, से किं तं समुग्गपक्खी समुग्ग- पक्खी एगागारा पत्रत्ता जहा पन्नवणाए एवं विततपवखी जावजे यावण्णे तहपगारा ते समासओ दुविहा पत्रत्ता तंजहा-पञ्जतगाय अपनत्तगा य नाणत्तं सरीरोगाहगा जहन्नेणं अंगुलप्स असंखेज- इभाग उक्कोसेणं धणुपुहत्तं ठिती उक्कोसेणं बाबत्तरि वाससहस्साइंसेसं जहा जलय- राणं जाव चउगतिया दुआगतिया परित्ता असंखेना पन्नत्ता से तं खहयासमुच्छिमतिरिक्खजोणिया से तं संमुच्छिपंचेदियतिरिक्खजोणिया।३७:36 (४५) से किंतंगभवक्कंतियपंचेदियतिरिक्खजोणिया गम्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया तियिहा पत्रत्ता तंजहा जलपरा थलयरा वहय। ।३८-37 For Private And Personal Use Only
SR No.009740
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigama Uvangsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages162
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size3 MB
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