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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ जीवाजीवापिगम - सव०/५/३८९ देसूणं एवं सुयनाणिस्सवि ओहिनाणिस्सवि मणपञ्जवनाणिस्सवि केवलनाणिणो नत्यि अंतरं अन्नाणिस्स साइय-सपञ्जवसियस्स जहणेणं अंतोमूहत्तं उक्कोसेणं छावष्टुिं सागरोमाई साइरेगाई, अप्पाबहुयं-सवत्योवा मणपजज्वनाणी, ओहिनाणी असंखेज्जगुणा आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी सट्ठाणे दोयि तुल्ला विसेसाहिया केवलनाणी अनंतगुणा अन्नाणी अनंतगुणा।२६४1-269 (३९०) अहवा छव्विहा सव्वजीया पन्नत्ता तं जहा-एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचेदिया अणिंदिया, संचिट्ठणंतरं जहा हेट्ठा, अप्पाबहुयं-सव्वत्योवा पंचेंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया तेइंदिया विसेसाहिया बेइंदिया विसेसाहिया अणिंदिया अनंतगुणा, एगिदिया अनंतगुणा, अहवा छब्बिहा सव्यजीवा पन्नत्ता तं जहा-ओरालियसरीरी वेउब्वियसरीरी आहारगसरीरी तेयगसरीरी कम्पगसीरी असरीरी, ओरालियसरीरी गं मंते ओरालियसरीरीति कालओ केवचिरं होइ गोयमा जहन्नेणं खुड्डागं भवागहणं दुसमऊणं उक्कोसेणं असंखेन कालं जाव अंगुलस्स असंखेनतिमागं वेउब्वियसरीरी जहण्णणं एक्कं सयनं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोबमाई अंतोमुत्तमभहियाइं आहारगसरीरी जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुतं तेयगसरीरी कप्पगसीरीर य पत्तेयं दुविहे तंजहा-अणादीए या अपञ्जयसिए अणादीए वा सपञ्जवसिए असरीरी साइए अपज्जवसिए ओरालियसरीरस्स अंतरं जहण्णेणं एक्कं समयं उनकोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तममहियाई वेउब्बियसरीरस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो आहारगसरीरस्स जहण्णेणं अंतीमुहत्तं उक्कोसेणं अनंत कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियह देसूगं तेवग-कम्मगाणं दोण्हवि अणाइय-अपज्जवसियाणं नस्थि अंतरं अणाइयसपञ्जवसियाणं नथि अंतरं असरीरिस्स साइय-अपनवसियरस नत्यि अंतरं अप्पाबहुयं-सच्चत्योवा आहारगसरीरी वेउब्वियसरीरी असंखेझगुणा ओरालियसरीरीअसंखेनगुणा असरीरीअनंतगुणा तेयाकम्मसरीरी दोवि तुल्ला अनंतगुणा सेत्तं छब्बिहा सव्यजीवा ।२६५)-264 पंचमी सब्जीया पडिक्ती समत्ता. --:छट्ठी स ब जी वा-प डि वती:(३९१) तत्थ णं जेते एवमाहंसु सत्तविधा सल्यजीवा पनत्ता ते एवमाहंसु तं जहा-पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया यणस्सतिकाइया तसकाइया अकाइया, संचिट्ठणंतरा जहा हेट्ठा अप्पाबहुयं-सव्यत्योवा तसकाइया, तेउकाइया असंखेनगुणा पुढविकाइया विसेसाहिया आउकाइया विसेसाहिया बाउकाइवा विसेसाहिया अकाइया अनंतगुणा वणस्सइकाइया अनंतगुणा ।२६६।-265 (३९२) अहवा सत्तविहा सव्यजीवा पन्नत्ता तं जहा कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा अलेस्सा, कण्हलेसे णं भंते कण्हलेसत्ति कालओ केवचिरं होई गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहुतं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तममहियाई नीललेस्से णं भंते नीललेस्सत्ति कालओ केवचिरं होइ गोयमा जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं दस सागरोवमाई पलिओवमस्स असंखेजतिभागमभहियाई काउनेस्से णं भंते काउलेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिणि सागरोयमाई पलिवओमस्स असंखेज्जतिभागममहियाई तेउलेस्से णं भंते तेउत्तेस्रोत्ति कालओ केवचिरं होइ गोयमा जहण्णेणं अंतोमुहत्तं For Private And Personal Use Only
SR No.009740
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigama Uvangsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages162
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size3 MB
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