SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुतं-१५ पत्रत्ता तं जहा-सोस्थिय-सिरिवच्छमंदियावत्तं-बद्ध-माणग-पदासण-मच्छ-दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला नियंका निक्कंकडच्छाया सप्पमा समरीइया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिवा] पडिरूवा तेसिं णं तोरणाणं उप्पिं बहवे किण्हचापरज्झए नीलचामरज्झए लोहियचामरज्झए हालिद्दचामरज्झए] सुक्किलचामरज्झए अच्छे सण्हे रुप्पपट्टे वइरदंडे जलयामलगंधिए सुरम्मे पासादीए दरिसणिज्ने अभूरिये पडिरूवे विउब्बइ तेसिं णं तोरणाणं उप्पि बहवे उत्तातिछत्ते पडागाइपडागे घंटाजुगले वापरजुगले उप्पलहत्थए परम-नलिणसुभाग-सोगंधिव-पोंडरीच-महापोंडरीय-सतपत्तसहस्सपत्तहत्थए सब्बरवणामए अच्छे जाव पडिरूवे विडच्वइ तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिवस जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिकं भूमिभागं विउब्धिति से जहानामए-आलिंगपुक्खोइ वा मुइंगपुस्खोइ वा परिपुत्रे सरतलेइ वा करतलेइ वा चंदमंडलेइ वा सूरमंडलेइ वा आपंसमंडलेइ वा उरमचम्मेद वा वसहचम्मेइ वा अणेपसंकुकीलगहरसवितते आवड-पचावड-सेढि-पसेढि-सोस्थिय-सोवत्यिय-पूसमाणव-बद्धमाणग-पच्छंडग-मगरंडग - जाए-मार-फुल्लावलि-पउमपत्त-सागरतरंग-वसंतलय-पउमलयभत्तिचित्तेहिं सच्छाएहि सप्पभेहिं समरीइएहि सउज्जोएहिं नानाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं उवसोभिए तं जहा-किण्हेहि नीलेहिं लोहिएहिं हालिदेहिं सुकिकलेहिं तत्थ णं जेते किण्हा मणी तेसिं णं मणीणं इमे एयावे वण्णावासे पन्नते से जहानामए-जीमूतएइ वा अंजणेइ वा खंजणेइ वा कजलेइ वा मसीइ वा मसीगुलियाइ वा गवलेइ या गवलगुलियाइ वा ममरेइ वा भमरावलियाइ वा भमरपतंगसारेइ वा जंवूफलेइ वा अद्दारिटेइ वा परपुढेइ वा गएइ वा गयकलभेइ वा किण्हसप्पेइ वा किण्हकेसरेइ वा आगासथिग्गलेइ वा किण्हासोएइ वा किण्हकणवीरेइ वा किण्हयंधुजीवेइवाभवे एयारूवेसिया नो इणडे समढे ते णं किण्हा मणी इत्तो इतराए वेव कंततराए चेलब पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पन्नत्ता तस्थ णं जेते नीला पणी तेसि णं मणीणं इमे एयारूवे वण्णवासे पत्रत्ते से जहानामए-भिंगेइ वाभिंगपत्तेइ वा सुएइ वा सुचपिच्छेइ वा चासेइ वा चासपिच्छेइ वा नीलीइ वा नीलीभेदेइ वा नीलीगुलियाइ वा सामाएइ वा उच्चंतगेइ वा वणरातीइ वा हलधरवसणे इवा मोरगीवाइ वा पारेवयगीवाइ वा अयसिकुसुमेइ वा वाणकुसुमेइ वा अंजणकेसियाकुसुमेइ या नीलुप्पलेइ वा नीलासोगेइ वा नीलकणवीरेइ वा नीलबंधुनीवेइ वा भवे एवारूवे सिया नो इणद्वे समढे ते णं नीला मणी एत्तो इतराए वेव जाव वण्णेणं पत्रत्ता तत्थ णं जेते लोहिया पणी तेसिंणं मणीणं इमेयारूवे यण्णवासे पनत्ते से जहानापए-प्तसरुहिरेइ वा उरटमरुहिरेइ वा वराहसहिरेइ वा मणुस्सरुहिरेइ वा महिसरूहिरेइ वा वालिंदगोवेइ वा बालदिवाकरेइ वा संझब्मरागेइ वा गुंजद्धरागेइ वा जासुअणकुसुमेइ वा किंसुचकुसुमेइ वा पालियाकुसुमेइ वा जाइहिंगुलएइ वा सिलप्पवालेइ वा पवालअंकुरेइ वा लोहियक्समणीइ वा लक्खरसगेइ वा किमिरागकंवलेइ वा चीणपिट्ठरासीइ वा रतुप्पलेइ वा रत्ताप्तोगेइ वा रत्तकणवीरेइ वारत्तवंधूजीवेइ वा भवे एयासवे सिया नो इणढे समढे तेणं लोहिया पणी इत्तो इट्टतराए चेव जाब वण्णेणं पत्रत्ता तथणंजेते हालिद्दा पणी तेसिंणं मगीणं इमेवारूवे वण्णायासे पन्नत्ते से जहानामए-चंपएइ वा चंपगछल्लीइ वा चंपगभेएइ वा हालिदाइ वा हालिद्दाभेदेइ वा हालिद्दागुलियाइ वा हरियालियाइ वा हरियालभेदेइ वा हरियालगुलियाइ वा For Private And Personal Use Only
SR No.009739
Book TitleAgam 13 Raipaseniyam Uvangsutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 13, & agam_rajprashniya
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy