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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनयणं-१ उवागच्छित्ता सिवानंद भारियं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिए मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते से वि य धम्मे मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए तं गच्छाहि णं तुम देवापि समणं भगवं महावीरं वंदाहि जाव पजुवासाहि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवजाहि 1८1-8 (११) तए णं सा सिवानंदा भारिया आनंदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ जाव सिरसावत्तं मत्यए अंजलिं कट्टु एवं सामि त्ति आणंदस्स समणोबासगस्स एयमहं विणएणं पडिसुणेइ तए गं से आणंदे समणोवास कोडुंबियपुरिसे सहावेइ सद्दावेत्ता एवं बयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया लहुकरणजुत्त- जोइयं समखुरवालिहाण-समलिहियसिंगएहिं जंबूणयामयकलावजुत्तपइविसिद्धएहिं रवयामयघंट-सुतरज्जुगवरकंचणखचियनत्थपग्गहोग्गाहियएहिं नीलुष्पकयामेलएहिं पवरगोणजुवाणएहिं नाणामणिकणग घंटियाजालपरिगयं सुजायजुगजुत्त-उजुग-पसत्यसुविरइनिष्मियं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेह उवडवेत्ता मम एयमाणतिय पञ्चप्पिणह तए णं ते कोडुंबियपुरिसा आणंदेणं समगोवासएणं एवं वृत्ता समाणा हतुचितपाणंदिया जाय एवं सामि त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुर्णेति पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त-जोइयं जाव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्टवेत्ता तमाणत्तियं पद्यप्पिणंति तए णं सा सिवानंदा भारिया हाया कयबलिकम्भा कय- कोउय-मंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगलाई बधाई पवर परिहिया अप्पहमहग्धा भरणालंकियसरीरा चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा धम्मियं जाणप्पवरं दुरु दुरिहित्ता वाणियगामं नयरं मज्झमज्झेणं निगच्छ निग्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ करेत्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणा नमंसमाणा अभिमुहेविणएणं पंजलियडा पज्जुवासइ तए समणे भगवं महावीरे सिवानंदाए तीसे य महइमहालियाए परिसए जाव धम्म परिकहेइ तए णं सा सिवानंदा भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हट्ठतु -[चित्तमादिया जाव उढाए उट्ठेइ उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्ती आयाहिण-पयाहिणं करेइ करेत्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता एवं ययासी सद्दहामि णं भंते निग्गंधं पावयणं जाव इच्छियमेंय भंते पड़िच्छियमेयं भंते इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते से जहेयं तुब्मे वदइ जहा णं देवाणुम्पियाणं अंतिए बहवे राईसर - तलवर - माडंबिय कोडुंबिय - इब्म सेट्टि सेणावइ- सत्यवाहम्यभि इया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वतए अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिखावइयं -दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जिस्सामि अहासुहं देवाणुप्पिया मा पडिबंधं करेहि तए णं सिवानंदाभारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्त- सिक्खावइयं दुवालसविहं। गिहिधम्मं पडिवज्र पडिवजित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुह दुरुहित्ता जामेव दिसं पाउडया तामेव दिसं पडिगया । ९ - 9 (१२) भंतेति भगवं गोयमे समणं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नर्मसित्ता एवं ययासी-पहू णं भंते आणंदे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे [ भवित्ता अगाराओ अणगारिय] पव्वइत्ताए दो इण सम गोयमा आणंदे णं समणोवासए बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणिहिति पाउणित्ता ! एक्कारस य उबासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासित्ता मासिए संलेहणाए अत्ताणं For Private And Personal Use Only ७
SR No.009733
Book TitleAgam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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