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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवई - १६ // ५ / ६७६ मुनिसुव्वए अरहा तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता मुणिसुव्वयं अरहं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ जाव तिविहाए पजुवासणाए पज्जुवासति तए णं मुणिसुव्वए अरहा गंगदत्तस्स गाहावतिस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ जाव परिसा पडिगया तए णं से गंगदत्ते गाहावती मुनिसुव्वयस्स अरहओ अंतियं धम्मं सोचा निसम्मं हट्ठतुट्टे उट्ठाए उट्ठेति उट्ठेत्ता मुणिसुव्वयं अरहं वंदइ नमसइ वंदिता नमसित्ता एवं क्यासी सद्दहामि णं भंते निग्गंधं पावयणं जाव से जहेयं तुमेवदह जं नवरं देवाणुप्पिया जेट्टपुत्तं कुडंबे ठावेमि तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे [ भवित्ता अगाराओ अणगारियं । पव्वयामि अहासहं देवाणुप्पिया मा पडिबंधं तए णं से गंगदत्ते गाहावई मुणिसुच्वएणं अरया एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्टे मुणिसुच्चयं अरहं वंदइ नमसइ वंदिता नमंसित्ता मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतियाओ सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमति पडिनिक्खमित्ता जेणेव हत्यिणापुरे नगरे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता विउलं असण पाण- [खाइम- साइम उबक्खडावेति उदक्खडावेत्ता मित्त-नाइ - नियग-जाव- आमंति आमंतेत्ता तओ पच्चा पहाए जहा पूरणे जाव जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठावेति तं मित्त-नाइ - नियग- जाव-जेडुपुतं च आपुच्छर आपुच्छित्ता पुरिससहस्सवाहणि सीयं दुरहति दुहित्ता मित्त-नाइ जाव परिजणेणं जेपुतेणं य समणुगम्मणमग्गे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि निग्धोसनादितरवेणं हत्यिणा-गपुरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ निष्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छड़ उवा- गच्छित्ता छत्तादिते तित्यगतिसए पासति एवं जहा उद्दायणे जाव सथमेव आभरणे ओमुयइ ओमुइता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति करेता जेणेव मुणिसुव्वए अरहा एवं जहेव उद्दायणे तहेव पव्वइए तहेव एक्कारस अंगाई अहि जाच मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ झूसेत्ता सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेति छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपते कालमासे कालं किचा महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाणे उववायसभाए देवसयणिचंसि जाव गंगदत्तदेवत्ताए उववन्त्रे तए णं से गंगदत्ते देवे अव वन्नमेत्तए समाणे पंचविहाए पद्धत्तीए पद्धत्तभावं गच्छति तं जहा- आहारपजत्तीए जाव मासा - मणपजत्तीए एवं खलु गोयमा गंगदत्तेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी [ सा दिव्या देवजुती से दिव्वे देवाणुभागे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए गंगदत्तस्स णं भंते देवस्स केवतियं कालं ठिति पत्रत्ता गोयमा सत्तरस सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता गंगदत्ते णं भंते देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खाएणं [भवक्खएणं ठिइक्खणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति कर्हि उववजिहिति गोयमा] महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्यदुक्खाणं अंतं काहिति सेवं भंते सेवं मंते त्ति । ५७७ - 576 सोलसमे सते पंचमो उद्देसो समत्तो • -: छट्ठोउ दे सो (६७७) कतिविहे णं मंते सुविणदंसणे पत्रत्ते गोयमा पंचविहे सुविणदंसणे पन्नत्ते तं जहाअहातचे पताणे चिंतासुविणे तब्बिवरीए अव्वत्तदंसणे सुत्ते णं भंते सुविणं पासति जागरे सुविणं पासति सुत्तजागरे सुविणं पासति गोयमा नो सुत्ते सुविणं पासति नो जागरे सुविणं पासति सुत्तजागरे सुविणं पासति जीवा णं घंते किं सुत्ता जागरा सुत्तजागरा गोयमा जीवा सुत्ता वि जागरा वि सुतजागरा वि नेरइयाणं भंते किं सुत्ता- पुच्छा गोयमा नेरइया सुत्ता नो जागरा नो सुतजागरा एवं जाव चउरिंदिया पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते किं सुत्ता- पुच्छा गोयमा सुत्ता नो जागरा जागरा वि मणुस्सा जहा जीवा वाणमंतर - जोइसिय-देमाणिया जहा नेरइया १५७८ -577 For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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