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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ भगवई - 911५/६८ सतावीसा तेसु अभंगयं नवरं-मणुस्साणं अब्भहियं जहणियाए ठिईए आहारए य असीतिभंगा वाणमंतर-जोतिप्त-वेमामिया जहा भवणवासी नवरं-नाणतं जाणियबं जं जस्स जाव अनुत्तरा सेवं मंते सेवं भंते त्ति जाव विहरइ ५०1-50 .पहले सते पंचमो उद्देसो समत्तो. -: छठो - उ दे सो :-- (६१) जावइयाओ णं मंते ओवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्यमागच्छति अत्यमंते दि य णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति हंता गोयमा जावइयाओ णं ओवासंतरओ उदयंते सुरिए चक्षुप्फास हव्यमागच्छति अस्थमंते वि य णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्यमागच्छति जावइय पं भंते खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं सव्यओ समंता ओभासेइ उज्जोएइ तवेइ पभासेइ अस्थपंते वि य णं सूरइए तावइयं व खेत्तं आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ उज्जोएइ तवेइ पभासेइ हता गोयमा जावतिय णं खेत्तं उदयंते सरिए आयवेणं सबओ समंता ओभासेइ उज्जोइए तवेइ पभासेइ अस्थमंते वि य णं सूरिए तावइयं चेव खेत्तं आयवेणं सवओ समंता ओभासेइ उनोएइ तवेइ पभासेइ तं भंते किं पुढे ओमासेइ अपहुं ओभासेइ [गोयमा पुटुं ओभासेइ नो अपुढे तं भंते किं ओगाढं ओभासेई अणोगाढं ओमासेई गोयमा ओगाढं ओभासेइ नो अनोगाढं तं भंते किं अनंतरोगाढं ओमासेइ परंपरोगाढं ओभासेइ गोयमा अनंतरोगाद ओमासेइ नो परंपरोगाढं तं भंते किं अणुं ओमासेइ बायरं ओभासेइ गोयमा अणुं पि ओमासेइ बायरं एि ओमासेइ तं भंते किं उड्ढे ओमासेइ तिरियं ओभासेइ अहे ओभासेइ गोयमा उड्ढे पि ओभासेइ तिरियं पि ओभासेइ अहे पि ओभासेइ तं भंते किं आई ओभासेइ मज्झे ओभासेइ अंते पि ओभासेइ गोयमा आई पि ओभासेइ मझेपि ओभासेइ अते पि ओमासेइ तं मंते कि सविसए ओमासेइ अविसए ओमासेइ गोयमा सविसए ओमासेइ नो अविसए तं भंते किं आनुपुब्बि ओभासेइ अनानुपुरि ओभासेइ गोयमा आनुपुब् िओभासेइ नो अनानुपुब्बि तं भंते कइदिसिं ओमासेइ गोयमा नियमा) छइिंसि ओभासेइ एवं-उनोवेइ तवेइ पभासेइ से नूणं मंते सव्वंति सव्वावंति फुसमाणकालसमयंसि जावतियं खेत्तं फुसइ तावतियं फुसमाणे पुटअठे ति बत्तव्यं सिया हंता गोयमा सव्वंति [सव्यावंति फुसमाणकालसमयंसि जावतियं खेतं फुसइ तावतियं फुसमाणे पुढे त्ति वत्तव्वं सिया तं मंते किं पुढे फुसइ अपुढे फुसइ गोयमा पुढे फुसइ नो अपुढे जाव नियमा छद्दिसिं फुसइ ५१।.51 (७०) लोयंते मंते अलोयतं फुसइ अलोयंते वि लोयंतं फुसइ हंता गोयमा लोयंते अलोयंतं फुसइ अलोयंते वि लोयंतं फुसइ तं मंते किं पुढे फुसइ अपुढे फुसइ गोयमा पुटुं फुसइ नो अपुढे जाव नियमा छद्दिसि फुसइ दीवंते मंते सागरंतं फुसइ सागरते वि दीवंतं फुसइ हता गोयमा दीवंते सागरंतं फुसइ सागरते वि दीवंतं फुसइ जाब नियमा छद्दिसि फुसइ [उदयंते भंते पोयतं फुसइ पोयंते वि उदयंतं फुसइ हंता गोयमा उदयंते पोयतं फुसइ पोयंते उदयंतं फुसइ जाव नियमा छद्दिसिं फुसइ छिदंते भंते दूसतं फुसइ दूसंते वि छिदंतं फुसइ हंता गोयमा छिदंते दूसंतं फुसइ दूसते वि छिदंतं फुसइ जाव नियमा छद्दिसिं फुसइ छायते भंते आयवंतं फुसइ आयवंते वि छायंतं फुसइ हंता गोयमा छायंते आयवंतं फुसइ आयवते वि छायंतं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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