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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८ भगवई 91-19/23 तवे गोयमा इहभविए तवे नो परभविए तवो नो तदुभयभविए तवे । इहमदिए भंते संजमे [ परमविए संजमे तदुभयमविए संजगे गोयमा इहभविए संजमे नो परमविए संजमे नो तदुभयभविए संजमे] 1१८1-18 (२४) असंवुडे णं भंते अनगारे सिज्झइ बुज्झइ मुझइ परिनिब्वाइ सव्वदुकखाणं अंतं करे गोयमा नो इणट्टे समठ्ठे से केणद्वेणं भंते एवं बुधइ- असंवुडे णं अणगारे नो सिज्झइ जाव नो सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ गोयमा असंवुडे अणगारे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ धणियबंधणवद्दओ पकरेइ हस्सकालठिझ्याओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ मंदाणुभावाओ तिव्वाणुभावाओ पकरेइ अप्पपएसहग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ आउयं च णं कम्पं सिय बंघइ सिय नो बंधइ अस्तायावेयणिजं च णं कम्पं भुञ्जो - भुजो उवचिणाइ अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टइ से तेणद्वेणं गोयमा असंबुडे अणगारे नो सिज्झइ जाय नो सव्वदुक्खाणं अंतं करेड् संबुडे णं मंते अणगारे सिज्झइ बुज्झइ मुचइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ हंता सिज्झइ जाव सव्वदुक्खाणं अंत करेइ से केणणं भंते एवं बुच्चइ-संवुडे णं अणगारे सिज्झिइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्चाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ गोयमा संवुडे अणगारे आउचबजाओ सत्त कम्मपगडीओ धणियबंधणबद्धाओ सिढिलबंधणबद्धाओ पकरेइ दीहकालठ्ठियाओ हस्सकालट्टियाओ पकरेइ तिव्याणुभावाओ मंदाणुभावाओ पकरेइ बहुप्पएसग्गाओ अप्पपरसग्गाओ पकरेइ आउयं च णं कम्पं न बंधइ अस्तायावेयणिनं च णं कम्मं नो भुखो - भुजो उवचिणाइ अणादीयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं बीईवयइ से तेणद्वेणं गोयमा एवं बुधइ-संबुडे अणगारे सिज्झइ जाव सव्वदुक्खाण अंतं करेइ 1१९/-19 www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५) जीवे णं मंते अस्संजए अविरए अप्पडिहयपत्रक्खायपावक्कमे इओ चुए पेचा देवे सिया गोयमा अत्येगइए देवे सिया अत्येगइए नो देवे सिया, से केणट्टेणं [मंते एवं बुच्चइअस्संजए अविरए अप्पडियपत्रक्खाय पावकम्मे ] इओ चुए पेचा अस्थेगइए देवे सिया अत्येगइए नो देवे सिया गोयमा जे इमे जीवा गामागर - नगर-निगम - रायहाणि खेड-कव्वडमडंब दोणमुह-पट्टणासम-सण्णिवेसेसु अकामत्तण्हाए अकामछुहाए अकामबंभचेरवासेणं अकामसीतात - दंस - मसग अण्हाणग- सेय- जल्ल-मल-पंक- परिदाहेणं अप्पतरं वा भुज्जतरं वा कालं अप्पाणं परिकितेसंति परिकिलेसित्ता कालमासे कालं किच्या अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोगेषु देवत्ताए उवयत्तारो भवंति केरिसा णं भंते तेसिं वाणमंतराणं देवाणं देवलोगा पत्ता गोयमा से जहानामए इहं असोगवणे इ वा सत्तवण्णवणे इ वा चंपयवणे इ वा चूयवणे इ वा तिलगवणे इ वा लउयवणे इ या नग्गोहवणे इ वा छत्तोहवणे इ वा असणवणे इ या सणवणे इ वा अयसिवणे इ वा कुसुंभवणे इ वा सिद्धत्थवणे इ वा यंधुजीवगणे इ वा निळं कुसु-मियमाइय- लवइय थवइय गुलुइय गोच्छिय जमलिय- जुबलिय- विष्णमिय-पणमिय-सुविभत पिंडमंजरि वडेंसगधरे सिरीए अतीव-अतीव उवसोमेमाणे उवसोमेमाणे चिट्ठइ एवामेव तेसिं वाणमंतराणं देवाणं देवलोगा जहण्णेणं दसवाससहस्सट्टितीएहिं उकोसेणं उपत्यका संथडा फुडा अवगाढगाडा सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति एरिसगाणं गोयमा तेर्सि वाणमंतराणं देवाणं देवलोगा पन्त्रता से तेणट्टणं गोयमा एवं युच्चइ-ज -जीवे - For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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