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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचमं सतं - उद्देसो-३ सत्तविहं पकरेइ तं जहा-रयणप्पभापुढविनेरइयाउयं वा [सक्करप्पमापुढविनेरइयाउयं वा बालुयप्पभापुढविनेरइयाउयं वा पंकप्पभापुढविनेरइयाउयं वा धूमप्पभापुढविनेरइयाउयं वा, तमप्यभापुढविनेरइयाउयं वा] अहेसत्तमापुढविनेरइयाउयं या तिरिखजोणियाउयं पकरेमाणे पंचविहं पकरेइ तं जहा-एगिदियतिरिक्खजोणियाउयं वा बेइंदियतिरिक्खजोणियाउयं वा तेइंदियतिरिक्खजोणियाउयं वा चउरिदियतिरिक्खजोणियाउयं वा पंचिदियतिरिक्खजोणियाउयं वा] पणुस्साउयं दुविहं [पकरेइ तं जहा-सम्मुछिमणुस्साउयं वा गब्यवक्खंतियमणुस्साउयं वा] देवाउयं चउब्विहं पकरेइ तं जहा-भवणवासिदावाउयं वा वाणमंतरदेवाउयं वा जो- इसियदेवाउयं या वेवाणियदेवाउयं वा सेवं भंते सेवं भंते ति ।१८३।-183 पंचमे सते तइओ उद्देसो समतो. - व उत्थो - उ सो :(२२५) छउमत्थे णं भंते पणुस्से आउडिजमाणाई सद्दाई सुणेइ तं जहा-संखसद्दाणि वा सिंगसहाणि वा संखियसपाणि बा, खरमुहीसद्दाणि वा पोयासदाणि वा पिरिपिरियासद्दाणि वा पणवसवाणि वा पडहसदाणि वा पंभासदाणि वा होरंभसदाणि या भेरिसदाणि वा झल्लरीसदाणि वा दुंदुभिसदाणि वा तताणि वा वितताणि वा घणाणि वा झसिराणि वा हंता गोयमा छउमत्येणं मणुस्से आउडिजमाणाई सद्दाइं सुणेइ तं जहा- संखसहाणि वा जाव झुसिराणि वा ताई भंते किं पुट्ठाई सुणेइ अपुट्ठाइं सुणेइ गोयमा पुवाइं सुणेइ नो अपुट्ठाइं सुणेइ [जाई भंते पुट्ठाई सुणेइ ताई किं ओगाढाई सुणेइ अणोगाढाई सुणेइ गोयमा ओगाढाइं सुणेइ नो अणोगाढाई सुणेइ जाइं भंते ओगाढाई सुणेइ ताई किं अनंतरोगाढाई सुणेइ परंपरोगाढाई सुणेइ गोयमा अनंतरोगाढाइं सुणेइ नो परंपरोगाढाई सुणेइ जाई भंते अनंतरोगाढाई सुणेइ ताई कि अणूई सुणेइ बादराई सुणेइ गोयमा अणूई पि सुणेइ बादराई पि सुणेइ जाई मंते अणूई पि सुणेइ बादराई पि सुणेइ ताई कि उड्ढे सुणेइ अहे सुणेइ तिरियं सुणेइ गोयमा उड्ढं पि सुणेइ अहे वि सुणेइ तिरियं पि सुणेइ जाई भंते उड्ड पि सुणेइ अहे वि सुणेइ तिरियं पि सुणेइ ताई किं आई सुणेइ मज्झे सुणेइ पञ्जवसाणे सुणेइ गोयमा आई पि सुणेइ मझे पि सुणेइ पञ्जवसाणे वि सुणेइ जाई भंते आई पि सुणेइ मझे वि सुणेइ पज्जवसाणं वि सुणेइ ताइ किं सविसए सुणेइ अविसए अविसए सुणेइ गोयमा सविसए सुणेइ नो अविसए सुणेइ जाइं भंते सविसए सुणेइ ताई किं आनुपुट्विं सुणेइ अणाणुपुचि सुणेइ गोयमा आणुपुट्विं सुणेइ नो अणाणुपुलिंब सुणेइ जाइं भंते आणुपुब्बि सुणेइ ताई किं तिदिसि सुणेइ जाव छद्दिसिं सुणेइ गोयमा] नियमा छद्दिसिं सुणेइ छउमत्थे णं भंते मणूसे किं आरगयाई सद्दाइं सुगेइ पारगयाइं सदाइं सुणेइ गोयमा आगयाइं सद्दाइं सुणेइ नो पारगयाइं सद्दाइं सुणेइ जहा णं भंते छउमत्थे मणूसे आरगयाइं सद्दाइं सुणेइ नो पारगयाइं सद्दाइं सुणेइ तहा णं केवली किं आरगयाई सद्दाई सुणेइ पारगयाइं सद्दाई सुणेइ गोयमा केवली णं आरगयं या पारगयं वा सब्बदूर-मूलमणतियं सई जाणइ-पासइ से केणतुणं भंते एवं बुबइ-केवली णं आरगयं वा पारगयं वा सव्वदूरमूलमणतियं सई जाणइ-पासइ गोयमा केवलीणं पुरत्यिमे णं मियं जाणइ अमियं प्रि जाणइ एवं दाहिणे णं पच्चस्थिमे णं उत्तरे णं उडे अहे मियं पिजाणइ अमियं पि जाणइ सव्वं जाणइ केवली सव्वं पासइ केवली सचओ जाणइ केवली सब्बओ पासइ केवली सबकालं जाणइकेवली सव्वकालं पासइ केवली सव्वभावे जाणइ केवली सव्वभावे पासइ केवली For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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