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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१ पइण्णा समाओ (३७१) एएसि णं नवण्हं बलदेव-बासुदेवाणं पुव्यभविया नव नामधेजा पविस्संति नव धम्मायरिया भविस्संति नव नियाणभूमीओ भविस्संति नव नियाणकारणा भविस्सति नव पडिसत्तू भविस्संति (तं जहा)- ११५९-७४-159-7 (३७२) तिलए य लोहजंधे वइरजंधे य केसरी पहराए अपराइए य भीमे महाभीमे य सुग्गीव ॥१६०||-85 (३७३) एए खलु पडिसत्तू कित्तूपुरिसाण वासुदेवाणं सव्वेवि चक्कजोही हम्मिहिंति सचक्केहि १६१||-86 (३७४) जंबुद्दीये णं दीवे एवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चडवीसं तित्थकर भविस्संति (तं जहा). १५९-८1-159-8 (३७५) सुमंगले य सिद्धत्ये निव्वाणे य महाजसे धम्मज्झए य अरहा आगमिस्साण होक्खाइ ||१६२||-87 (३७६) सिरिचंदे पुष्फकेऊ पहाचंदे य केवली सुवसागरे य अरहा आगपिस्साण होक्खइ |३१६३1-88 (३७७) सिद्धत्ये पुण्णयोसे य महाघोसे य केवली सबसेणे य रहा आगमिस्साण होक्खड़ 11१६४|1-89 (३७८) सूरसेणे य अरहा महासेणे य केवली सव्वाणंदे य अरहा देवउत्ते य होक्खइ 11१६५|1-90 (३७९) सुपासे सुब्बए अरहा अरहे य सुकोसले अरहा अनंतविजए आगमिस्साण होक्खइ !॥१६६।।-91 (३८०) विमले उत्तरे अरहा अरहा य महावले देवाणंदे य अरहा आगमिस्साणं होक्खइ ||१६७||-92 (३८१) एए वुत्ता चउचीसं एएबवप्पि केवली आगमिस्साण होखंति धम्मतित्थस्स देसमा ||१६८11-93 (३८२) वारस चक्कवट्टी भविस्संति वारस चक्कट्टिपियरो भविस्संति बार मायरो भविस्संति वारस इत्थीरयणा भविस्संति नव बलदेवे-वासुदेवपियरो भविस्सति नव वासुदेवमायरो भविरसंति नव बलदेवमायरो भविस्संति नव दप्सारमंडला भविस्संति उत्तमपुरिसा मझिम-पुरिसा पहाणपुरिसा जाब दुवे दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति नव पडिसत्तू भविस्संति नव पुव्यभवनामधेजा नव धम्मावरिया नव नियाणभूमीओ नव नियाणकारणा आयाए एरवए आगमिस्साए भाणियच्या एवं दोसुवि आगमिस्साए भाणियव्वा ।१५९/-159 (३८३) इच्नेयं एवपाहिज्जति तं जहा-कुलगरवंसेति य एवं तित्थगरवंसेति य चक्कवट्टिवंसेति व दसारवंसेति य गणधरवंसेति य इसिवंसेति यजतिवंसेति य मुणिवंसेति य सुतेति वा सुतंगेति वा सुयसमासेति या सुयखंधेति वा समाएति या संखेति या समत्तमंगमक्खायं अज्झयणं ।१६०|- ति बेपी पणणग समयाओ सफ्तो चउत्थं अंगसुत्तं समवाओ समत्तो | For Private And Personal Use Only
SR No.009730
Book TitleAgam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages82
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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