________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४२
ठाणं • ९/-/477
(८४४) नव गेवेजा-विमाण-पत्थडा पन्नत्ता तं जहा-हेटिम-हेट्टिम-गेविज्ञ-विमाणपत्थडे हेछिम-मज्झिम-गेविज- विमाण-पत्यडे, हेट्टिम-उवरिम-गेविन-विमाण-पत्यडे, मज्झिमहेट्ठिम-गेविन -विपाण-पत्थडे,मज्झिम -मज्झिम-गोविन-विपाण-पत्थडे,मज्झिम उवरिमगेविन विमाण-पत्यडे,उवरिस -हेडिम-गेविन-विमाण-पत्यडे,उ परिम-मझिम-विज-विपाण -पत्थडे, उवरिम-उपरिम-गेविज िवपाण-पत्थडे,एतेसि णं नवण्हं गेविन-विमाण-पत्थडाणं नव नामधिज्जा पन्नत्तातंजहा- ६८५1-686 (८४५) भद्दे सुभद्दे सुजाते सोमणसे पियदरिसणे सुदंसणं अमोहे य सुप्पबुद्धे जसोधरे
॥१२७]-1 (८४६) नवविहे आउपरिणामे पन्नत्ता तं जहा-गतिपरिणामे गतिबंधणपरिणामे ठितीपरिणामे ठितिबंधणपरिणामे उड्ढंगारवपरिणामे अहेगारवपरिणामे तिरियंगारवपरिणामे दीहंगारवपरिणामे रहस्संगारवपरिणामे ।६८६1-686
(८४७) नवनवमिया णं भिक्खुपडिमा एगासीतीए रातिदिएहिं चउहि य पंचुतरेहि भिक्खासतेहिं अहासुतं [अहाअत्यं अहातचं अहामगं अहाकप्पं सम्मं काएणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया] आराहिया यावि भवति ।६८७1-687
(८४८) नवविधे पायच्छित्ते पन्नत्ता तं जहा-आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुमयारिहे विवेगारिहे विउसग्गारिहे तवारिहे छेयारिहे मूलारिहे अणवठ्ठप्पारिहे ।६८८1-688
(८४९) जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे दीहवेतड्ढे नव कूड़ा पन्नत्ता (तं जहा-) १६८९-91-689-1 (८५०) सिद्धे भरहे खंडगा माणी वेयड्ढ पुण्ण तिमिसगुहा भरहे वेसमणे या भरहे कूडाण नामाई
||१२८||-1 (८५१) जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं निसहे वासहरपव्वते नव कूडा पन्नत्ता तं जहा- १६८९-२/-689-2 (८५२) सिद्धि निसहे हरिवस विदेह हरि घिति असीतोया
अवरविदेहे रूपगे निसहे कूडाण नामाणि (८५३) जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्यते नंदनवने नव कूडा प. १६८९-३।-689-3 (८५४) नंदणे मंदरे चेव निसहे हेमवते रचय रूयए य सागरचित्ते बहरे बलकूड़े चेव योद्धब्बे
।।१३०|-1 (८५५) जंबुद्दीवे दीये मालवंतवक्खारपब्बते नव कूडा पन्नत्ता.- १६८९-४] -689-4 (८५६) सिद्धे य मालवंते उत्तकुरु कच्छ सागरे रयते सीता य पुन्ननामे हरिस्सहकूडे य बोद्धव्ये
||१३१11-1 (८५७) जंबुद्दीवे दीये कच्छे दीहवेयडू नव कूडा पन्नत्ता तं जहा- १६८९-५। -689-5 (८५८) सिद्धे कच्छे खंडग माणी वेयड्ढ पुण्ण तिमिसगुहा कछे वेसमणे या कच्छे कूडाण नामाई
॥१३२!-1 (८५९) जंबुद्दीवे दीवे सकळे दीहवेयड्ढे नव कूडा पन्नता.- १६८९-६। -6896
॥१२९||-2
For Private And Personal Use Only