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श्री त्रिभंगीसार जी
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जीव में होने वाले राग-द्वेष, मोह भाव जीव की परिणति होने से जड़ नहीं हैं और जीव में स्वभाव नहीं होने से चेतन नहीं किन्तु चिदाभास हैं । अचेतन मिथ्यात्व अविरति कषाय योग तो पुद्गल कर्म प्रकृति रूप हैं। चेतन मिथ्यात्व अविरति कषाय योग जीव के परिणाम हैं। बुद्धि पूर्वक राग-द्वेष, मोह न होने से ज्ञानी को अबंधक
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** गया है।
आत्मा-कर्म, नो कर्म, भाव कर्म से सर्वथा भिन्न है, यह तीनों संसारी दशा में जीव के साथ हैं; पर यह न जीव हैं और न जीव के स्वरूप में हैं। जीव का स्वरूप तो एकमात्र एक अखण्ड चैतन्य स्वरूप ही है। इस प्रकार दोनों को पृथक्-पृथक् अनुभव करना ही भेद विज्ञान है । जो भेदज्ञानी ऐसा भेद करके निज तत्व की उपादेयता तथा पर की अनुपादेयता का श्रद्धान करता है वही पर को छोड़कर शुद्धात्मा को प्राप्त कर सकता है। शुद्धात्मा की उपलब्धि अर्थात् साक्षात्कार होने पर रागादि का स्वयं अभाव होता है, यही संवर भाव है
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* भेद विज्ञान का बारम्बार अभ्यास करना यही मोक्षमार्ग है, उसी से शुद्धात्म तत्व की प्राप्ति होती है, पूर्ण आस्रव भाव रुकता है तथा उसी जीव को मोक्ष होता है ।
* मानव जीवन आत्मकल्याण के लिये मिला है अतः इन्द्रियों का निरोध आवश्यक है, साधक को पूर्ण इन्द्रिय विजयी होना चाहिये । इन्द्रिय और मन को जीतने वाला ही सच्चा वीर होता है।
जी मन, वचन, काय को रोककर आत्मज्ञान देने वाले शुद्ध निश्चयनय का आलम्बन लेकर स्वस्वरूप में एकाग्र हो जाते हैं, वे निरंतर रागादि भावों से रहित होते हुए बन्ध रहित शुद्ध समयसार स्वरूप शुद्धात्मा का अनुभव करते हैं ।
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* आध्यात्मिक भजन *
मंगलाचरण- १
अविनाशी अविकार निरंजन सिद्ध प्रभो । अशरीरी हो ध्रुव तत्व तुम सिद्ध प्रभो ॥ तीनलोक के नाथ परमब्रह्म सिद्ध प्रभो । देवों के हो देव शुद्धातम सिद्ध प्रभो ॥ रत्नत्रय मयी ममल स्वभावी सिद्ध प्रभो ।
अनन्त चतुष्टय धारी भगवन सिद्ध प्रभो ॥ ज्ञानानंद स्वभावी निष्कल सिद्ध प्रभो । निजानंद लवलीन स्वयं हो सिद्ध प्रभो ॥ ब्रह्मानंद परिपूर्ण स्वयं हो सिद्ध प्रभो । सहजानंद स्वरूप स्वयं भू सिद्ध प्रभो ॥
भजन-२
सिद्धं सिद्ध स्वरूप, हमारो जिन सिद्धं सिद्ध स्वरूप ॥
९. अलखनिरंजन ध्रुव अविनाशी, तीनजगत को भूप... हमारो...
२.
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४.
मलह ममल है केवल ज्ञायक, अमृतरस को कूप... हमारो ... शुद्ध बुद्ध है अरस अरूपी, अशरीरी चिद्रूप हमारो... सोहं अहम् ब्रह्म परमेश्वर, सहजानंद स्वरूप... हमारो... ५. शुद्धं शुद्ध है ममल स्वभावी, सत्चित आनंद रूप... हमारो... ज्ञानानंद स्वभावी चेतन, परमानंद अनूप... हमारो... शुद्धं प्रकाशं शुद्धात्म तत्वं, रत्नत्रय सत्रूप... हमारो... ८. ध्रुव है ध्रुव है ध्रुव तत्व है, निजानंद रस कूप... हमारो...
६.
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