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गाथा-५२,५३,५४
श्री त्रिभंगीसार जी होने पर तो आनंद ही आनंद बरसता है। कंठ कमल खिलने पर वचन सिद्धि, स्वामित्व योग सिद्धि, ज्ञान जागरण और इन्द्रिय जय होता है। प्रश्न- यह चार अर्क का स्वरूप बताईये ? समाधान-१.सुइरंज सी अर्क - अतीन्द्रिय स्वभाव में रंजायमान करने वाला, अपने ज्ञायक भाव का स्वयं प्रगट रहना, सुई रंज सी अर्क है।
२. सुइ उवन सी अर्क - अपने स्वरूप की अनभूति में रत रहना, अज्ञान अंधकार का विलय होना, ज्ञान सूर्य की प्रगटता, सुइ उवन सी अर्क है।
३.विपन सी अर्क - अपने क्षायिक भाव की सामर्थ्य को प्रगट करने वाला, दृढ़ता और अभयपना आना षिपन सी अर्क है।
१. ममल सी अर्क- अपने ममल स्वभाव का दर्शन होना और उसी के प्रकाश में आनन्दित रहना, ममल सी अर्क है।
इस साधना की सिद्धि होने पर कण्ठ कमल खिल जाता है। इसमें शुभ राग, धर्म प्रभावना, प्रसिद्धि आदि बाधक होते हैं।
प्रश्न- अब आगे के पाँचवें कमल का स्वरूप भी बताईये ? समाधान- पाँचवां मुख कमल है। इसकी साधना भी उसी प्रकार योग-ध्यान साधना से की जाती है। इसकी छह पंखुड़ी होती हैं, उन पर- विक्त सी अर्क, सुइ समै सी अर्क, सुनंद सी अर्क, हिययार सी अर्क, जान सी अर्क और जैन सी अर्क की साधना अभ्यास किया जाता है। मुख कमल खिलने पर तो गजब का आनन्द आता है। जो साधक वर्तमान में होशपूर्वक जीने लगा, उसका ही मुख कमल खिलता है। इसकी साधना का अभ्यासक्रम गुरू महाराज ने चौबीस ठाणा से शुरू किया था। मुख कमल खिलना अर्थात् साधु दशा, शान्त प्रसन्न आनन्द में रहना, फिर इसे कोई संकल्प-विकल्प, भय-चिन्ता होते ही नहीं हैं। हमेशा हँसमुख प्रसन्न रहता है। इसकी विशेषतायें हैं - चित्त शान्ति, अवधिज्ञान का जागरण,तेजस्विता, सर्व हित परायणता, आनन्दमय जीवन । इसका बाधक कारण एक ही है -प्रभावना प्रसिद्धि, जहाँ इसमें फँसे कि बाधा उत्पन्न हुई क्योंकि इतनी सिद्धियाँ होने पर यह अपने आप होती है।
प्रश्न- आसन की दुढ़ता से क्या होता है? समाधान-आसन की दृढ़ता से ही मन-वचन-काय एकाग्र होते हैं। आसन की सिद्धि होने पर शरीर में सर्दी-गर्मी आदि द्वन्दों का प्रभाव नहीं पड़ता इसी से संयम की सही स्थिति बनती
प्रश्न- अब इन छह अर्को का स्वरूप बताईये? समाधान-१.विक्त सी अर्क- अपने शुद्ध स्वरूप को व्यक्त प्रगट प्रत्यक्ष देखना विक्त सी अर्क है।
२. सुइ समै सी अर्क- अज्ञान के अंधेरे से बचाने वाला, प्रकाश स्वरूप स्व समय शुद्धात्मा की अनुभूति सुइ समै सी अर्क है।
३. सुनंद सी अर्क- सहज स्वभाव में ही सहजानन्द है। उसकी सहज अनुभूति सहजानन्द में रहना सुनंद सी अर्क है।
१. हिययार सी अर्क- आत्मानुभूति से प्रकाशित हृदय कमल का आनंद मुख कमल पर झलकना हिययार सी अर्क है।
५. जान सी अर्क- जिन पद से सुशोभित आत्मा का ज्ञान पूर्वक अनुभव करना जान सी अर्क है।
६.जैन सी अर्क- (जिन सी अर्क) ज्ञान लक्ष्मी से शोभायमान शुद्धात्म स्वरूप जिन स्वभाव का प्रकाश होना जैन सी अर्क है ।
इनकी साधना और अभ्यास से मुख कमल खिलता है तो जय जयकार मचती है; फिर उसे संसार से कोई प्रयोजन ही नहीं रहता, यह पर्यायावरण से ऊपर उठने की स्थिति है। प्रश्न- यह सब तो साधु पद की अनुभूतियाँ है,यह साधक दशा में कैसे होंगी? समाधान- जब साधक को यह अनुभूतियाँ होती हैं तभी वह साधु और सिद्ध होता है। यह ज्ञान पूर्वक सविकल्प ध्यान साधना है,जब निर्विकल्प स्थिति बने वही साधु है।
प्रश्न- इस साधना में अभ्यास का क्या अभिप्राय है? समाधान-अभ्यास और वैराग्य से चित्तवृत्तियों का निरोध होता है। जो स्वभाव से चंचल है, ऐसे मन को किसी एक ध्येय, लक्ष्य पर स्थिर करने के लिए बारम्बार चेष्टा करते रहने का नाम अभ्यास है। जैसे तत्व का अभ्यास, मैत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ भावना का अभ्यास, निज स्वरूप की अनुभूति का अभ्यास, वीतरागता की भावना का अभ्यास, इनका निरन्तर अभ्यास करने से लक्ष्य की प्राप्ति होती है। जब तक अभ्यास है वह साधक दशा है, स्थायी होने पर साधु और सिद्ध है।