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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला १०८ प्रभाती- १५६ तर्ज-क्या अक्कल.. आत्म निकन्दन जग दुख भंजन, माधुरी मूरति वाणी । शुद्धातम के हो तुम रसिया, कर अनुभव ओ प्राणी ।। लाख चौरासी फिरे भटकता, धर समता अब प्राणी । अनन्त चतुष्टय का धनी आतम, अब निज रूप पिछानी ॥ शुद्धातम को ध्याय निरन्तर, मारग मोक्ष निशानी । रत्नत्रय को अब तू गहले, है अनुपम सुखदानी ॥ प्रभाती - १५८ चेतन से अब लगन लगाओ, शुद्धातम को वरना है। मद मिथ्यात्व कषायें बीती, राग द्वेष को हरना है। १. ममल स्वभाव है सत्य सनातन, मुक्ति श्री को वरना है। विषय भोग से तज तू ममता, आवागमन से डरना है । २. चारों गतियों में दुःख भोगे, पग पग जीना मरना है। ध्यान लगा ले अब आतम का, ध्रुव की अलख जगाना है। ३. तन में रहता है इक आतम, उसका नाम सुमरना है। समता का तू नित प्याला पी, इस जग से अब डरना है । प्रभाती - १५७ जय हो आतम देव तुम्हारी, महिमा अगम अथासी है। ऐजी महिमा अगम अथासी है॥ गुप्त गुफा में जन्म लियो है, जिनवर ने ये भासी है। ऐजी जिनवर ने ये भासी है। १. तू है शान्ति समता सागर, आतम में ही लीन सदा। तू ही ज्ञान पुंज की गागर, अपने को तू चीन्ह सदा ।। त्रय कमों से तू है न्यारा, शिव सुख की तैयारी है... जय हो... २. निज आतम में लीन रहे नित,शाश्वत सुख को पायेगी। सुख सत्ता की धारी चेतन, अजर अमर पद पायेगी । आतम से आतम में देखो ज्ञानानन्द बिहारी है... जय हो.. ३. शुद्ध स्वरूप निहार के चेतन, अविनाशी पद पाओगे। सम्यक् दर्शन ज्ञान चरण की, मुक्ति नगरिया जाओगे || धुव तत्व शुद्धातम हो तुम, ममलह ममल स्वभावी हो... जय हो... प्रभाती- १५९ निज सत्ता अपनाओ चेतन, मक्ति श्री को वरना है। ज्ञान की डोर ज्ञान से खींचो, ज्ञान ही ज्ञान में रहना है। १. अपने गुप्त गुफा में बैठो, अजर अमर पद पाना है। अमृत अनुपम ज्ञान स्रोत का, निशदिन प्याला पीना है ॥ २. परम तृप्त आनन्द दशा में, तुमको हर क्षण रहना है। सिद्धोहं सिद्धोहं जपके, सिद्धोहं ही होना है ॥ ३. द्रव्य दृष्टि का उदय हो गया, कमल कली का खिलना है। अतीन्द्रिय आनन्द पद की धारी, आतम में ही विलसना है ॥ ★★★ *मुक्तक आप आयेंगे जब-जब आपका स्वागत है। आपके यहां आने की बसन्तजी हम सबको चाहत है। आपके वचनामृत की हमें प्रतीक्षा है। संसार के सागर से तिरें ये इच्छा है। यह शरीर ही मैं हूं, यह शरीरादि मेरे हैं, मैं इन सबका कर्ता हूं, यह मिथ्या मान्यता ही संसार परिभ्रमण का कारण है। वर्तमान मनुष्य भव में हमें तीन शुभ योग मिले हैं - बुद्धि, स्वस्थ शरीर और पुण्य का उदय तथा इनका सदपयोग - दुरूपयोग करने की पूर्ण स्वतंत्रता है। बुद्धि का दुरुपयोग करने के कारण वर्तमान जीवन को अशांत, दुःखमय बनाये हैं और भविष्य के लिये अशुभ कर्मबन्ध करके दर्गति के पात्र बन रहे हैं।
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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