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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन -९६ तर्ज - गाये जा गीत मिलन के... आये हैं आत्म मिलन को, गुरू के दर्शन को, आत्म रस पाना है। १. गति चारों में अनादि से भटका, मोह मदिरा में भूल हो। अब आतम में अलख जगा ले, रहेगा सुख से फूल हो । पाकर के ज्ञान सरिता को, कि गोते लगाना है...आये हैं... २. आतम में कई किरणें जागी, रहे थे उसमें डूब हो। विषय कषायों की तृष्णा भागी, आई उनसे ऊब हो । पीकर के ज्ञानामृत को, अमर हो जाना है...आये हैं... ३. सातों तत्वों की श्रद्धा से, जग हो गया है धूल हो। अब अन्तर से नेह लगा तू, आठों कर्म हैं शूल हो । पीकर के आत्म सुधा को, कि शिवपुर पाना है ...आये हैं... ५. भजन -९४ तर्ज-दिल लूटने वाले... चेतन के गुण चेतन में हैं, महिमा गुरूवर ने गाई है। शुद्धात्म रमण में रत होकर, आतम में अलख जगाई है। जिन जिनयति जिनय जिनेन्द्र पओ, विन्यान विंद रस रमन मओ। आनन्द का अमृत पीने से अजर अमर हो जाई है...चेतन..... जिन जिनवर उत्तउ-जिनय पउ, जिन जिनियो कम्म अनंत विली। निज ध्यान आत्म का धरने से, कर्मों का क्षय हो जाई है...चेतन.... जं करम विशेष अनन्त रूई, अन्मोय न्यान विलयन्तु सुई। निज आत्म की ज्योति मिलने से, इस जग में फिर न आई है...चेतन.... जिन नंदानन्द आनन्द मओ, जिन सहजानंद सहाव मओ। निज ध्यान मगन हो जाने से, परमातम पद को पाई है...चेतन.... निर्भय निर्मम निज आतम है, सत्ताधारी शुद्धातम है। शीतल समता धारण करके, शिव नगरी को अब पाई है...चेतन.... भजन -९५ तर्ज-बाबुल का ये घर... ब्रह्मचारी बसंत जी का, हुआ दर्श ये सुहाना है। वैराग्य धार लिया, पहना समता का बाना है। गलियों गलियों में, देखो धूम मची भारी। अपनी नगरी में, आये बाल ब्रह्मचारी ॥ ब्रह्मचारी.... २. अष्टान्हिका पर्यों में, आठ अंग को बतलाया। सम्यक् दर्शन का, दिग्दर्शन करवाया ॥ ब्रह्मचारी.... ३. पर्युषण पर्यों में, दश धर्म को बतलाये। उत्तम क्षमा को धारण कर, आत्म श्रद्धा को उर लाये॥ ब्रह्मचारी.... ४. कर जोड़ निवेदन है, फिर लौट के आना है। हम भूले भटकों को, सत्मार्ग दिखाना है ॥ ब्रह्मचारी.... भजन - ९७ तर्ज - चेतो चेतन निज में आओ... अपने में अपने को देखो,शुद्धातम तुमको बुला रही है। १. लाख चौरासी में बहु भटके, मिथ्या मोह के कारण अटके । भेदज्ञान कर निज में आओ, कर्मों की अब चला चली है । अपने में ........ | २. तुम हो शुद्ध गुणों के धारी, क्षमा शान्ति पर तुम बलिहारी। श्रद्धा से अब प्रीति लगाओ, सम्यक्त ज्योति तुम्हें बुला रही है। अपने में ३. अगम अगोचर अरस अरूपी, सत चित् सुख आनन्द स्वरूपी । जिनवाणी के तुम गुण गाओ, शाश्वत सुख जो बता रही है । अपने में | ४. आतम की है महिमा न्यारी, वो है अनन्त चतुष्टय धारी । अब आतम में अलख जगाओ, धर्म ध्वजा अब फहरा रही है। अपने में ........
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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