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________________ अध्यात्म चन्द भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन -६६ हे आतम तू परमातम स्वयं। निष्क्रिय तू है, तू ही त्रिकाली तू कृत्य कृत्य स्वयं॥ १. अतीन्द्रिय पद का तू धारी, परमानंद का तू अधिकारी । तू वीतराग स्वयं, हे आतम तू परमातम स्वयं ॥ २. आत्म धर्म का सुमरण कर ले, सत चित् आनन्द को तू वर ले। तू चिदानंद स्वयं, हे आतम तू परमातम स्वयं ॥ ३. शाश्वत सुख में लीन रहे त. निःश्रेयस पद शीघ्र गहे त् । त्रैकालिक ध्रुव, हे आतम तू परमातम स्वयं ॥ ४. ज्ञानानंद जीवन में आए, तारण की जीवन ज्योति सुनाये । ज्ञानाधार स्वयं, हे आतम तू परमातम स्वयं ॥ भजन -६८ तर्ज - मेरे देश की धरती सोना .... आतम की ज्योति, शिव सुख देती, भव का दु:ख हर लेती। आतम की ज्योति॥ १. सम्यकदर्शन पाने के लिए, भव्यों का मन हरषाता है। सात तत्वों का निर्णय करके, श्रद्धा के सुमन चढ़ाता है । यह धर्म ध्यान की महिमा है, जग जाती चेतन ज्योति ।। आतम की ज्योति.... २. ज्ञाता दृष्टा हो जाने से, निज ज्ञान समझ में आता है। आतम परमातम बन जावे, भेदज्ञान ही मन को भाता है । यह स्वानुभूति की महिमा है, पुरूषार्थ ज्ञान की ज्योति ।। आतम की ज्योति.... ३. दशधर्मों को धारण करके, अब शिवनगरी को पाना है। बारह भावना को भा करके, सोलह कारण को ध्याना है । यह केवल ज्ञान की महिमा है,और सिद्धालय की ज्योति ।। आतम की ज्योति.... *मुक्तक भजन -६७ तर्ज - मेरे मुन्ने भूल न जाना.... मेरे चेतन भूल न जाना, तूने आतम को पहिचाना। तू परमातम बन जाना, हो-हो-हो। १. निज ध्यान मगन हो जाना, केवल ज्योति को पाना । तू शिवरमणी को वरना, ओ-हो-हो... मेरे चेतन... २. शुद्धातम रसिक बन जाना, तीर्थंकर पद को पाना । तू अविनाशी बन जाना, ओ-हो-हो... मेरे चेतन... ३. निग्रंथ भेष तू धरना, बाईस परीषह सहना । तू क्षमा मूर्ति हो जाना, ओ-हो-हो... मेरे चेतन... ४. मिथ्यातम का क्षय करना, भेदज्ञान की ज्योति जलाना। सम्यक् दर्शन को पाना, ओ-हो-हो... मेरे चेतन... ५. माया को दूर भगाना, पुरूषार्थ को जगाना । तू ज्ञान का दीप जलाना, ओ-हो-हो... मेरे चेतन... ६. स्व पर का विवेक जगाना, राग-द्वेष को हटाना। तू वीतराग बन जाना, ओ-हो-हो... मेरे चेतन... वीतराग की नगरी में जायेंगे हम। ज्ञान वैभव को निज में लखायेंगे हम॥ शांत समता का गहरा समन्दर भरा। आत्म शुद्धि में गोते लगायेंगे हम ॥ प्यारी आतम से एक बात हमको कहना है । धुवधाम में डटी रहो सत्शील का ये गहना है । स्वानुभूति के रस से भरे प्याले को सदा पीते ही रहें। आत्म रस में मगन सराबोर होते ही रहें ।
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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