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________________ ascONAR मंगलमय अध्यात्म 4 अध्यात्म का मार्ग अपने आत्म स्वरूप की साधना, ज्ञान का मार्ग है। अध्यात्म का अर्थ अपने आत्म बोध को उपलब्ध होना है। यह मनुष्य र को पलायन करना नहीं सिखाता बल्कि जीवन को अंतर एवं बाह्य से भी व्यवस्थित कर जीवन को मंगलमय बना देता है। वर्तमान में तेजी से बदलते भौतिकतापूर्ण परिवेश में एकमात्र अध्यात्म ही शरण है। अपने आत्म स्वरूप को भूलकर जीव चार गति चौरासी लाख योनि रूप संसार में अनादिकाल से भटक रहा है। महान सौभाग्य पुण्य उदय से यह मनुष्य भव संसार से मुक्त होने आनन्द परमानन्द मय परम पद, अविनाशी सिद्धि मुक्ति को प्राप्त करने के लिये मिल गया है। इस जीवन का सदुपयोग एकमात्र आत्म साधना ज्ञान ध्यान पूर्वक आत्म कल्याण का पथ प्रशस्त करने में ही है। ऐसा अवसर संसार की अनादिकालीन यात्रा में इतनी सहजता से मिल जाना महान सौभाग्य की बात है। श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज ने हमें ज्ञानी होकर मोक्षमार्ग में प्रवृत्त किया है। अपने को जानना, स्वरूप साधना करना ही ज्ञानी का ध्येय होता है और यही जीवन की सार्थकता का मूल आधार है। अपने आत्म कल्याण की भावना, गुरू ग्रंथों के स्वाध्याय एवं श्री संघ के सान्निध्य से प्रेरणा प्राप्त कर बहिन श्रीमती चंद्रकांता जी डेरिया ने अपने जीवन को भी गुरूभक्ति और धर्मश्रद्धा से संयुक्त किया, इसी क्रम में समय-समय पर जो सहज अंतर्भावना उठी और लेखनीबद्ध हुई, वही भावना इस 'अध्यात्म चन्द्र भजन माला' में भजन और अन्य रचनाओं में परिणत हो गई है। श्री प्रेमचंद जी डेरिया और उनका पूरा परिवार श्री गुरू महाराज के प्रति, धर्म प्रभावना के लिये पूर्ण समर्पित है। सांसारिक विविधताओं के बीच रहते हुए भी उनकी भावना गुरू भक्ति और धर्म मय है यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है। श्रीमती चंद्रकांता जी डेरिया द्वारा लिखित यह भजन अध्यात्म और वैराग्य से पूर्ण है। वर्तमान समय की धारा के अनुरूप भी इस कृति में भजन हैं जो सभी के लिये उपयोगी होंगे। श्री प्रेमचंद जी डेरिया परिवार द्वारा इस अध्यात्म चंद्र भजन माला का प्रकाशन सभी के लाभ हेतु ज्ञानदान की प्रभावना के शुभ भाव सहित कराया गया है। इन भजनों से सभी भव्यात्माओं को अपने आत्म कल्याण करने की प्रेरणा प्राप्त हो यही मंगल भावना है। भोपाल वर्षावास * दिनांक १४.९.९९ (भाद्र पद सुदी पंचमी) ACADER आमुख यह जीव अनादिकाल से चार गति चौरासी लाख योनियों रूपी अटवी - में भटकता चला आ रहा है, लेकिन इसे थकान नहीं लगी, कहा है कि 'बहु पुण्य पुंज प्रसंग से शुभदेह मानव का मिला वर्तमान में श्री भगवान महावीर स्वामी जी की विशुद्ध आम्नाय में जन्मे सद्गुरू श्रीमद् जिन तारण तरण स्वामी जी की परम्परा से लाभान्वित होती हुई, श्रीमती चन्द्रकांता डेरिया ने अपने निर्मल भावों को भजनों के माध्यम से शब्दों में अंकित कर अपनी विशुद्ध परिणति का परिचय दिया है, वह प्रशंसनीय है। श्री गुरू महाराज से प्रार्थना है कि इस शुद्ध भावों की प्रतीक अध्यात्म चन्द्र भजन माला के मनन से सभी भव्य जीव अपने आत्म कल्याण के मार्ग को प्रशस्त कर भावी जीवन को मंगलमय बनावें। इसी भावना के साथ, गंजबासौदा पं.सरदारमल जैन दिनांक ३०.८.९९ अध्यात्म गंगा अध्यात्म की निरंतर बहती धारा के अमृत बिन्दु को ग्रहण करने के लिये मानव मन सदैव प्रतीक्षारत रहता है। हृदय कमल खिल उठता है, जब कहीं दूर से ऐसी स्व-पर कल्याण की ध्वनि सुनाई देती है, आज भी भजनों के स्वर और संगीत लहरियों में खो जाने का अवसर है। भजन प्राय: पर्व या मंदिर विधि के अवसर पर ही हमें सुनने को मिलते हैं, पूज्य ब्रह्मचारी बसन्त जी के भजन कैसेट को हम कितने मनोभावों से तल्लीन होकर सुनते हैं, यह हम ही जानते हैं। भजन पुस्तक रूप में भी हमारे सामने आये हैं.यह कह कर हम आपसे यह कहना चाह रहे हैं कि सृजन अति दष्कर कार्य है। गृहस्थाश्रम में रहकर अध्यात्म साहित्य की रचना में सक्रिय भूमिका का निर्वाह भी इसी श्रेणी में रखा जाना उचित लगता है। आज जब हम पाश्चात्य संस्कृति की ओर भाग रहे हैं, तो अपना धर्म और अध्यात्म कहां तथा किस अवस्था में है, हमें ध्यान ही नहीं है। हमारा समाज, हमारी परम्परायें और यहां तक कि हमारी धारणाएं बदल रही हैं, ऐसे में एक नवीन कृति "अध्यात्म चंद्र भजन माला" हमें पाश्चात्य संस्कृति से दूर रख कर धर्म के निकट लाने में सहायक सिद्ध हो सकती है। हमारी बड़ी दीदी का यह प्रयास निश्चित रूप से हमें सन्मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित कर रहा है, उनके इस कदम से हमें मार्गदर्शन मिला है। अध्यात्म की श्री गंगा में सदैव स्नान का यह पथपाकर हम गौरवान्वित हैं और ऐसा विश्वास करते हैं कि यह भजन सभी लोगों को भक्ति के माध्यम से स्व-कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगे। र भोपाल आनंद तारण, दिनेश तारण EGORY दिनांक १.९.९९ दीपक तारण : ब्र.बसन्त [3]
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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