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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन - ५१ बन जा रे चेतन तू बन जा रे, शुद्धातम का योगी बन जा रे॥ १. आतम तेरी सत्ता निराली, पर भावों से है तू खाली। ममल स्वभाव में रम जा रे, शुद्धातम का योगी बन जा रे ॥ बन जा रे.. २. तेरा रूप है जग से आला, सरल शांत है समता वाला। चिदानंद चेतन में घन जा रे, शुद्धातम का योगी बन जा रे ॥ बन जा रे... ३. शील की चुनरिया डाली, ज्ञान की छाई है उजियारी। धर्म के मार्ग पे चल जा रे, शुद्धातम का योगी बन जा रे ।। बन जा रे... ४. तत्व निर्णय और भेदज्ञान की, लगी है क्यारी स्व पर ज्ञान की। निर्वाण के पथ पर चल जा रे, शुद्धातम का योगी बन जा रे ॥ बन जा रे... ५. जब तक तू स्व को देखेगा, अपने गुण को ही लेखेगा। संसार से अब उबर जा रे, शुद्धातम का योगी बन जा रे ।। बन जा रे... भजन -५३ तर्ज - संभाला है मैंने बहुत .... ये कर्मों ने मुझको बहुत है सताया, इन विषयों में फिर भी मन जा रहा है। कषायों को जब तक भुलाया न जाये, ये माया मिथ्या मोह में मन जा रहा है ॥ १. ये मिथ्या के छाये, बादल घनेरे, इन्हें छोड़ के कर दे सम्यक् सबेरे । ये संसार सागर, महा दु:खमय है, निज आतम की भक्ति को मन गा रहा है...ये कर्मों ने मुझको.... २. छह द्रव्यों को जाने, नौ पदार्थ पहिचाने, ये अस्ति की मस्ती में तत्वों को जाने । रत्नत्रय की गागर में, समता की लहरें, अतीन्द्रिय हो जाने को मन गा रहा है...ये कर्मों ने मुझको.. ३. निज आतम को पाऊँ, अनुभूति में आऊँ सहज में मगन हो, शुद्धातम को ध्याऊँ । अजर है अमर है, ये आतम हमारी, परमातम हो जाने को मन गा रहा है...ये कर्मों ने मुझको... भजन -पर तर्ज- भैया मेरे राखी.. भैया मेरे आतम से नेहा लगाना, भैया मेरे निज आतम अपनाना। १. पर संबंधों से नेहा लगाये, वो तेरे कुछ काम न आये। अपने में रम जाना, रम जाना, भैया मेरे आतम... २. मन में गुरू की श्रद्धा लाना, ममल स्वभावी तुम बन जाना। ज्ञान का दीपक जलाना, जलाना, भैया मेरे आतम... ३. गुरू तारण की वाणी पाकर, भेदज्ञान को उर में धरकर । निज घर में आ जाना, आ जाना, भैया मेरे आतम... ४. माया मोह के जाल में पड़कर, क्यों हंसता है जग में फंसकर । पीछे पड़ेगा पछताना, पछताना, भैया मेरे आतम... भजन -५४ तर्ज-न कजरे की धार न ..... दश धर्मों को धार, सोलह कारण को पाल । समता का किया श्रंगार, आतम कितनी सुन्दर है । १. भव बंधन तोड़ के आई, जन रंजन छोड़ के आई। अज्ञान की इस दुनियां में, आतम से नेह लगाई ।। रत्नत्रय की गागर से, आतम का करे श्रृंगार... दशधर्मों को धार, सोलह कारण को पाल..... २. माया मिथ्या छोड़ के आई, मढतायें तोड के आई। संसार के इस बंधन को, दृढ़ता से तोड़ के आई ॥ अनुपम है निराली, आतम का कर उद्धार... दशधा को धार, सोलह कारण को पाल...
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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