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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन -४२ तर्ज-जिन धर्म की क्या.... आतम की क्या तारीफ करूं, वह परमातम बन जाता है। जो आतम ही का ध्यान धरे, वह शुद्धातम हो जाता है | मैं सहज शुद्ध निज आतम हूँ, मैं निरालंब परमातम हूँ। मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूँ, मैं पूर्ण ब्रम्ह शुद्धातम हूँ॥ ज्ञाता दृष्टा बन जाने से, अन्तर आतम हो जाता है... आतम... मैं चित् प्रकाश चैतन्य ज्योति, मैं शाश्वत पद का धारी हूँ। मैं एक अखंड अभेद पुंज, मैं ब्रह्मानंद बिहारी हूँ ॥ निज आत्म मगन हो जो ज्ञानी, शिवरमणी को वह पाता है... आतम... कर्ता मैं नहीं न भोक्ता हूँ, मैं सहजानंद स्वभावी हूँ। ये राग द्वेष कुछ मेरे नहीं, आकिंचन पद का धारी हूँ॥ चन्द्र रमण करे जो आतम में, वह सिद्धातम हो जाता है...आतम... भजन -४४ तर्ज - दीदी तेरा देवर... जिनवाणी की श्रद्धा उर में आना. हे माँ रत्नत्रय का दीवाना। तारण गुरू के चरणों में आना, हे माँ रत्नत्रय का दीवाना। १. ये संसार सागर, महा दु:खमय है । इसे जो भी त्यागे, वही वीर नर है ॥ मिथ्यात तजकर निजातम निहारें । वे ही शुद्धातम जो श्रद्धा को धारें ॥ ब्रह्मचर्य से हृदय को सजाना, राग द्वेषादि विकारों को हटाना...हे मां रत्नत्रय... गति चार में हम, अनादि से भटके । शरण तेरी आये नहीं, दुनियां में अटके ॥ मैं आनन्द में आऊँ, चिदानन्द पाऊँ । सहज में मगन हो, परमातम को ध्याऊँ॥ माया मिथ्या को दूर भगाना, स्व पर का विवेक जगाना...हे मां रत्नत्रय... अजर है अविनाशी, ये आतम हमारी। अमर है अनोखी, शांत मुद्राधारी ॥ मोह मदिरा को पीकर,पड़ी जग में आकर। दशलक्षण को पाऊँ रत्नत्रय को ध्याऊँ॥ भेदज्ञान की ज्योति जलाना, गति चारों में न भटकना। चौदह ग्रंथ से हृदय को सजाना...हे माँ रत्नत्रय... भजन-४३ तर्ज-जिया कब तक उलझेगा... आतम कब आयेगी,चैतन्य के अनुभव में। कितने भव बीत गये, संकल्प विकल्पों में। १. गति चारों में भटके, अपनी मनमानी से । निज वैभव भूल गये, बनकर अज्ञानी से ॥ विषयों को छोड़ आतम, अपने में आ जाओ। चैतन्य निधि पाकर, काहे उलझे विकल्पों में...आतम... २. निज लीन हुई आतम, समता की मस्ती में। शल्यों को दूर करो, शुद्धात्म की बस्ती में ॥ विषयों की मादकता, भोगों का चक्कर है । शुद्धात्म मगन होकर, लो मोह से टक्कर है...आतम... ३. राग द्वेष का अंश जहाँ, वहाँ कर्म का बन्धन है। पुण्य पाप का भेद मिटे, हो कर्म निकंदन है ॥ स्व संवेदन को पाकर, स्वानुभूति में आ जाओ। हो शिवपुर के वासी, परमानन्द में रम जाओ...आतम... * मुक्तक जीवन में समता शांति आती कल्याण भी अपना होता है। जब निर्णय ठोस हुआ अपना आतम शुद्धातम होता है | शुद्ध दृष्टि वो अपनी रखता है, नित आतम के दर्शन करता। निर्बन्ध हुआ है वह अब तो, और मुक्ति श्री को है वरता ॥
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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