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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला २६ भजन-३५ तर्ज - मेरे मेहबूब शायद... मेरे गुरूवर तरण तारण, शरण में तेरे आये हैं। मेरी आतम शुद्धातम हो,ये आशा लेके आये हैं। १. संकल्प विकल्पों में अटके हो, ज्ञान बिन ए मेरे भाई । आर्त रौद्र ध्यान छोड़ करके, स्वरूप सन्मुख है हो जाई । मेरे गुरूवर... २. इसी संसार में देखो, कहीं कोई नहीं मेरा । नजर जाये जहाँ देखू, ये चिड़िया रैन बसेरा ॥ मेरे गुरूवर... ३. ये रत्नों में अमोलक रत्न, सम्यक्दर्श प्यारा है। ये चक्रवर्ती की निधि से, अमूल्य और न्यारा है ॥ मेरे गुरूवर... ४. चन्द्र अब क्लेश को छोडो, नाता अपने से अब जोडो। ये जग के झूठे रिश्ते हैं, दिल में ये बात समायी है ॥ मेरे गुरूवर... भजन -३६ तर्ज-बाबुल का ये घर बहना... गुरूवर तेरे चरणों में, अब मेरा ठिकाना है। हृदय में शान्ति मिले, सच्ची श्रद्धा उर लाना है। १. शल्यों को छोड़ करके, मूढताओं को हटायेंगे। लेश्याओं को मंद करके, निज आतम को पायेंगे । चौदह ग्रंथ समझ करके, आतम निधि को पाना है। गुरूवर तेरे चरणों में... २. सुखों के सागर तुम, काहे गफलत में पड़ते हो। सहजानंद में आओ, तुम काहे कर्मों से लड़ते हो । चन्द्र की अरज यही, इस जग से तर जाना है। गुरूवर तेरे चरणों में... ३. संयोगों में पड़के, आत्म तत्व को भूले हो। चैतन्य को पाओ, क्यों जग में फूले हो ॥ आनन्द में हो जाओ, आतम में समाना है । गुरूवर तेरे चरणों में... *मुक्तक अनादि से सम्बन्ध अपना मोह माया से जुड़ रहा । खाते पीते सोते उठते बैठते मन उड़ रहा ॥ देखलो सुनलो सभी अब मंत्र जप तुम नित करो। सप्त व्यसन का त्याग कर अठदस क्रियाओं को धरो॥ *मुक्तक ध्रुव में ही वास हो, धुव में हो बसेरा। ज्ञान की ज्योति से, ज्ञान में हो ज्ञान का ही उजेरा॥ हे तत्व निष्ठ योगी, आपके गुणों का वर्णन मैं कैसे करूं। सत्य तो यह है, मैं भी आपके समान बनके भव सागर से तरूं ॥ जिन शासन का मूल आधार है ये,ये ही मुक्ति का कारण है। PO आतम शुद्धातम चिंतन कर, बतलाते सद्गुरू तारण है | ये ही विश्व व्यवस्था है, करो संयम तप को धारण है। M मंगलमय तेरा जीवन हो, कर शुद्ध दृष्टि अब धारण है || आत्म के आनन्द की, इक बात हमको कहना है। उस खुमारी से भरे, आनन्द को ही गहना है ॥ शाश्वत सुख के शांति का रस, याद आने लगा है। रोम रोम में हो रोमांचित, ज्ञान के रस में पगा है।
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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