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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन - २८ तर्ज-संसार चक्र में भ्रमते.. सिद्ध दशा पाने के लिए, स्वानुभूति रस पान करें। अशरीरी बनने के लिए, आत्म से नेहा जोड़ चलें॥ आतम ने आतम को पाया, अपने में ही वह हुलसाया। निजात्म में रमने के लिये, रत्नत्रय को धार चलें ॥ सिद्ध दशा... २. उवन उवन में आन समाया,पर पद भूल स्वपद को पाया। आत्म ध्यान करने के लिए, ॐ नम: सिद्ध जपते चलें ॥ सिद्ध दशा... ३. अचिंत्य चिंतामणि आतम मेरी, दु:ख द्वन्दों से है न्यारी। सुख सत्ता पाने के लिए, ज्ञान में गोते लगाते चलें ॥ सिद्ध दशा... ४. चेतन मेरा चित्त में समाया, रमते जगते निज पद पाया। शिव की डगर जाने के लिए, आठों कर्म नष्ट करते चलें ॥ सिद्ध दशा... भजन - २९ ममल स्वभावी हमें बनना ही पड़ेगा। संसार के चक्कर से निकलना ही पड़ेगा। १. जन्म मरण रोग से बचते ही रहेंगे । निज ज्ञान अनुभूति सदा करते ही रहेंगे ॥ निज ज्ञान को अपने में ढलना ही पड़ेगा । ममल स्वभावी... २. आनन्द अमृत पान हम करते ही रहेंगे । शुद्ध दृष्टि में सदा बहते ही रहेंगे ॥ दिव्य प्रकाशी को अब लखना ही पड़ेगा । ममल स्वभावी... ३. अजर अमर आत्म को भजते ही रहेंगे । वीतरागता में सदा मौज करेंगे ॥ परमात्म पद में सदा रहना ही पड़ेगा । ___ ममल स्वभावी... भजन -३० तर्ज - तुमसे लागी लगन... तुम तो ज्ञानी महा, आये गुरूवर यहाँ, हो हमारे। तुमको शत्-शत् वंदन हैं हमारे॥ १. गुरूवर बासौदा नगरी पधारे, हुए हैं धन्य भाग्य हमारे । तेरा दर्श किया, जन्म सफल हुआ, मेरे प्यारे, तुमको शत्.... २. गुरू ने शांति सुधारस को चाखा, करते मोह का सतत निवारा । आत्म सुमरण किया, राग को तज दिया, धर्म धारे,तुमको शत्.... ३. गुरू हैं शान्ति मुद्रा के धारी, तेरे चरणों में नमन हमारी । तुम हो ज्ञानी महा, कर्म नाशे घना, संयम धारे,तुमको शत्.... ४. गुरू ने आतम की ज्योति जगाई, दिव्य दर्शन को अपने लखाई। निज वैभव को देखा,शुद्ध वृद्धि में लेखा, आनन्दधारे, तुमको शत्.... ५. निज आतम की महिमा निराली, है पर द्रव्यों से खाली । अक्षय सुख है यहाँ, स्वानुभूति महा, ज्ञान धारे, तुमको शत्.... pakadaKALENDAR *मुक्तक - - - , निधियाँ दी गुरूवर ने हमको इनका प्रयोग हम करवायेंगे।' शिक्षण शिविर ही होगा अब, और ध्यान की क्लास लगायेंगे। सोती समाज अब जाग उठे, धर्म की प्रभावना करायेंगे । द्रव्यानुयोग पै बैठ के हम, करणानुयोग के गीत गायेंगे । - - श्री संघ का यह शिविर हर जगह चलता रहे। धर्म की प्रभावना अब हर जगह मचती रहे ॥ धर्म की प्रमुखता से हर सभी काम हो। ज्ञान ध्यान आत्मा में शीघ्र ही विश्राम हो ॥ POONAKJACADEMAND -
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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