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________________ ६९ ܀ ܀ ܀ ܀ यह सब व्यर्थ है? ऐसा तारणस्वामी जी ने अपने ग्रंथों में कहा? समाधान - जो श्री गुरू तारण स्वामी जी ने कहा है, वह सत्य है, ध्रुव है, प्रमाण है परंतु सम्यग्दर्शन बाहर से बताने की वस्तु नहीं है, वह तो अपनी आत्मानुभूति की बात है तथा सदाचार संयम का किसी ने विरोध नहीं किया। बाह्य क्रिया को धर्म मानना मिथ्यात्व है। हम लोग श्री गुरू महाराज की वाणी को लेकर सत्य धर्म की प्रभावना प्रचार कर रहे हैं वह किसी पर को बताने के लिए नहीं है, स्वयं की साधना के लिए है। आप लोग अपनी मनमानी कर रहे हैं, जिससे सामाजिक संगठन बिगड़ रहा है, सामाजिक-धार्मिक विरोध पैदा हो रहा है,क्षेत्रों का विकास रुक रहा है,क्या यही धर्म प्रभावना और साधना का मतलब है? समाधान - भाई सा.,मनमानी हम कर रहे हैं या आप कर रहे हैं? सामाजिक धार्मिक वातावरण हमारे कारण बिगड़ रहा है या आपके कारण, जरा विचार करो। आज बीस वर्षों से साधक संघ के माध्यम से गांव-गांव जाकर सामाजिक संगठन, धर्म प्रभावना और जीवों का जागरण होना, कौन ने किया ? इतने निस्वार्थ भाव से, निस्पृह वृत्ति से अपनी साधना करते हुए यह सब हो रहा है, अगर आपको यह अच्छा नहीं लग रहा है, आप प्रतिबन्ध लगा दें, हम सब बन्द कर देंगे। विशेष - १००८ प्रश्नोत्तर का संकलन अध्यात्म किरण में है, वहां से देख लें। यह पर को बताने या पर को देखने की बात ही नहीं है,न उससे कोई लाभ है। यह तो स्वयं की स्वयं में ही समझने की बात है क्योंकि इसका यथार्थ निर्णय हुये बगैर अपना आगे का मार्ग बनेगा ही नहीं। अहंकार और स्वच्छन्दीपना तो अज्ञानी मिथ्यादृष्टि को होते हैं, सम्यग्दृष्टि ज्ञानी को यह नहीं होते। सभी भव्य जीव अध्यात्म अमृत से अपने जीवन को अमृतमय बनायें, निरंतर जयमाल, भजन का चिंतन मनन कर आनन्द में रहें यही मंगल भावना है। भोपाल दिनांक ४.५.९९ ब्र शान्तिानन्द . अनुक्रम . विषय पृष्ठ क्रमांक | आध्यात्मिकभजन पृष्ठ क्रमांक तत्व मंगल १. जय जय हे जिनवाणी मंगलाचरण २. प्रभु नाम सुमर मनुवा ३. करले रे श्रद्धान गुरू भक्ति ४. मतकर मतकर रेतू जयमाल की महिमा ५. निज हेर देखो चेतनालक्षणं बोलो तारण तरण १. श्री मालारोहण चल छोड़ देरे २. श्री पण्डित पूजा उद्धार तेरा होगा ७२ ३. श्री कमल बत्तीसी ९. विचारो विचारो विचार १०. अरी ओ आत्मा सुनरी ४. श्रीश्रावकाचार ११. रहो रहो रेशुद्धात्मा ५. श्री ज्ञानसमुच्चय सार १२. परभावों में न जाना ६. श्री उपदेश शुद्धसार १३. मत करो रे सोच विचार ७. श्री त्रिभंगी सार १४. मैं तारण तरण तुम ८. श्री चौबीस ठाणा १५. ले जायेंगे ले जायेंगे ९. श्री ममल पाहुड १६. देखो रे भैया जा है १०. श्री खातिका विशेष १७. तुमको जगा रहे गुरू १८. अरी ओ आत्मा जग जाओ ११. श्री सिद्धस्वभाव १९. अरे आतम वैरागी बन १२. श्री सुन्न स्वभाव २०. चेतन अपने भाव सम्भाल १३. श्री छद्मस्थ वाणी २१. करले करले तू निर्णय १४. श्री नाममाला २२. नहिं है नहि है रे सहाई जैनागमजयमाल २३. दे दी हमें मुक्ति ये बिना २४. यह तारण तरण की वाणी १५. श्री समयसार २५. हंस हंस के कर्म बंधाये १६. श्री नियमसार २६. सोचो समझोरे सयाने १७. श्री प्रवचनसार २७. निज को ही देखना और १८. श्री पंचास्तिकाय २८. होजा होजा रे निर्मोही १९. श्री अष्टपाहुड २९. गुरू तारण तरण आये २०. श्री अमृतकलश ३०. दृढता धरलो इसी में ३१. अब चेत सम्भल उठ २१. श्री तारण पंथ ३२. धन के चक्कर में भुलाने २२. श्री छहढाला ३३. नहीं जानी भैया नहीं जानी २३. ज्ञानीज्ञायक ३४. प्रभु नाम सुमर दिन रैन २४. ध्रुवधाम ३५. नर भव मिला है विचार २५. ममल स्वभाव ३६. मेरी आतम दौरानी है २६. मुनिराज ३७. जग अंधियारों का २७. सम्यग्ज्ञान ३८. तन गोरो कारो ३९. करले तू दीदार २८. साधक ४०. ध्रुव से लागी नजरिया २९. मोक्षमार्ग ४१. श्री गुरू को हमारा है ३०. शुद्ध दृष्टि ४२. शुद्धातम को तरसे ३१. भाव विशुद्ध ४३. तारण स्वामी ने जगाया ३२. कल्याण ४४. गुरू तारण लगा रहे टेर ३३. बारह भावना ४५ मेरी अंखियों के सामने । ४६. हे भव्यो, भेद विज्ञान करो ३४. सतत प्रणाम | ४७. जय तारण सदा सबसे ही 2.600000000000002655 2
SR No.009710
Book TitleAdhyatma Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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