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________________ अध्यात्म अमृत अध्यात्म का अर्थ है अपने आत्म स्वरूप को जानना। अध्यात्म मनुष्य को पलायनवादी नहीं बनाता बल्कि उसके जीवन को और अंतर जगत को व्यवस्थित कर स्थायी सुख शान्ति आनंदमय रहने का पथ प्रशस्त करता है। अध्यात्म एक विज्ञान, कला और दर्शन है, जो मनुष्य के जीवन में जीने की कला का मूल रहस्य उद्घाटित कर देता है। यही अध्यात्म, अमृत है जो अजर अमर बनाने वाला है। अध्यात्म में जाति - पांति का कोई भेद नहीं होता, इस मार्ग में जैन-अजैन मनुष्य ही नहीं बल्कि संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच गति के जीव भी इस तथ्य को समझने की पात्रता रखते हैं। वर्तमान समय में भौतिक वस्तुओं के संग्रह और भोगाकांक्षा की जन मानस में प्रतिस्पर्धा सी चल रही है किन्तु इसका परिणाम सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी विकृति के अलावा कुछ नहीं मिल रहा है। हमारे देश में हुए संतों, भगवन्तों ने जो अध्यात्म का मार्ग हमें दिया है, वही जन-जन के लिये कल्याणकारी शांति स्वरूप है। वीतरागी भगवान महावीर स्वामी की परंपरा में हुए सोलहवीं सदी के महान संत श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज, जो अपने समय के अनूठे आध्यात्मिक क्रांतिकारी, वीतरागी संत थे, उन्होंने जाति-पांति से परे अध्यात्म की साधना, सत्य धर्म की प्रभावना द्वारा, धर्म और परमात्मा के नाम पर फैल रहे जड़वाद, आडम्बर और पाखंडों के प्रपंचों का अवसान करते हुए अपनी ओजस्वी आध्यात्मिक देशना से देश की जनता को झकझोर कर जगा दिया था, जिसके फलस्वरूप लाखों जैन-अजैन उनके अनुयायी बने और रत्नत्रय की एकता रूप संसार से तरने का मार्ग जो तारण पंथ है उसका बोध हुआ। श्री गुरुदेव आचार्य श्री जिन तारण स्वामी जी महाराज के संघ में ७ निर्ग्रन्थ मुनिराज,३६ आर्यिका माता जी,२३१ ब्रह्मचारिणी बहिनें, ६० व्रती ब्रह्मचारी श्रावक तथा लाखों की संख्या में १८ क्रियाओं का पालन करने वाले श्रावक थे । ज्ञान, ध्यान और साधना की अनुभूतियों से पूर्ण उन्होंने चौदह ग्रंथों की रचना की। मध्यम पद प्रमाण से चौदह ग्रंथ १०,००० श्लोक प्रमाण सिद्ध होते हैं, जो अध्यात्म साहित्य का एक अकूत भंडार है और अपने आपमें अपने आप जैसा ही अनुपमेय है। इन ग्रन्थों में क्या है ? यह जिज्ञासा हर भव्य जीव की होती है। इसी जिज्ञासा को पूर्ण करने के लिये- हमारे सन्मार्ग दर्शक, दशम प्रतिमाधारी आत्मनिष्ठ साधक पूज्य श्री स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने यह अध्यात्म अमृत जयमाल अत्यंत करूणा कर हम सभी भव्यात्माओं को दी है। पूज्य श्री साधना काल में छह-छह माह की मौन साधना में रत रहे, उस समय स्वयं की आत्म साधना के अन्तर्गत यह जयमाल और भजन सहजता से प्रस्फुटित हुए हैं। पूज्य श्री की जीवन शैली अपूर्व आनन्दमयी है। उनने यह कुछ लिखा नहीं, यह सब सहज ही लिखाता गया है और आज हमारे लिये एक अनमोल निधि बन गई है। पूज्य श्री महाराज जी ने चौदह ग्रंथ जयमाल में प्रत्येक ग्रंथ का सार अपनी सरल सुबोध भाषा में पिरो दिया है। जो जन सामान्य के लिये भी सहजता से ग्राह्य है। इसके साथ ही पूज्य श्री ने जैनागम संबंधी जयमाल भी सृजित की है, जिसमें कुन्दकुन्दाचार्य के पाँच परमागम का सार निकालकर अमृत कुंड में डूबने का मार्ग प्रशस्त किया है। अमृतचन्द्राचार्य के अमृत कलश का दोहन किया है तथा छहढाला,शुद्ध दृष्टि,ज्ञानी, मुनिराज,साधक, धुव धाम, ममल स्वभाव, तारण पंथ, अमृत कलश, सम्यक्ज्ञान, मोक्षमार्ग आदि की अनुभव पूर्ण मौलिक जयमाल भी इस कृति में संयुक्त हैं । अन्त में पूज्य श्री महाराज जी द्वारा रचित बारह भावना एवं साधना परक, वैराग्य वर्द्धक, प्रेरणाप्रद आध्यात्मिक भजन भी दिये गये हैं,जो हमारी अंतरात्मा को जागृत करने वाले हैं। प्रतिदिन आप इसका व्यक्तिगत रूप से स्वाध्याय पाठ तो करें ही, साथ ही प्रतिदिन के स्वाध्याय के पश्चात् सामूहिक रूप से इसका वांचन सबके लिये मंगलकारी होगा। यह अध्यात्म अमृत जयमाल आपके जीवन में अध्यात्म अमृत के निर्झर बहाये और अमृत मय मंगल मय जीवन बने यही मंगल भावना है। ब्रह्मानंद आश्रम पिपरिया ब्र. बसन्त दिनांक - १.५.९९
SR No.009710
Book TitleAdhyatma Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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