________________
५३]
१.
२.
३.
४.
[ अध्यात्म अमृत
५.
२६. मुनिराज
मैं आतम शुद्धातम हूँ, परमातम सिद्ध समान हूँ । ज्ञायक ज्ञान स्वभावी चेतन, चिदानन्द भगवान हूँ ॥ ऐसे ज्ञान श्रद्धान सहित जो चढ़ता मुक्ति जहाज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
,
ज्ञान ध्यान में लीन सदा जो, तपश्चरण ही करता है । आर्त रौद्र ध्यानों को तजकर, धर्म शुक्ल ही धरता है ॥ जनरंजन मनरंजन से छूटा, छूटा सकल समाज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है | कलरंजन का काम नहीं है, न कोई मायाचारी है। सरल शान्त निस्पृह बालकवत्, छूटी दुनियांदारी है ॥ जग का सब अस्तित्व मिटाकर, बना वह जग का ताज है। ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है | ध्रुव तत्व की लगन लगी है, मुक्ति श्री को पाना है। अब जग से कोई काम नहीं है, परमातम बन जाना है । पाप परिग्रह छूट गये सब, छूटा सब भय लाज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
आत्म ध्यान की साधना करता, परमानन्द में रहता है। शान्त शून्य निर्विकल्प स्वयं मैं, किसी से कुछ न कहता है ॥ जग में क्या होता जाता है, किसी से कुछ न काज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है | ६. निस्पृह आकिंचन ब्रह्मचारी, उत्तम क्षमा का धारी है। अर्घावतारण असि प्रहार में, समता शांति बिहारी है ॥ परम अहिंसा धर्म का धारी, अनुपम शाह नवाज है। ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
जयमाल ]
७.
८.
९.
१.
पंच महाव्रत पंच समितियां, तीन गुप्ति का पालक है। दस सम्यक्त पंच ज्ञान रत, महावीर सम बालक है । अभय अडोल अकंप स्वयं में, करता आतम काज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
२.
शुद्ध दृष्टि समदर्शी साधक, परम शान्त परमार्थी है। ऊँच नीच का भेदभाव तज, स्वयं बना आत्मार्थी है | ध्यान समाधि ऐसी साधी, हिरण खुजाता खाज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
१०. कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, ज्ञानानंद में रहता है। पूर्व कर्म बंधोदय के, उपसर्ग परीषह सहता है || तारण तरण भवोदधि तारक, सद्गुरू परम जहाज है। वीतराग निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधु वह मुनिराज है |
दस चौदह परिग्रह का त्यागी, बन्धन रहित विरागी है। क्रियाकांड पुण्य को तजकर, धर्मध्यान अनुरागी है ॥ नमन सदा ऐसे साधु को, लिया स्वतंत्र स्वराज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
२७. सम्यग्ज्ञान
ओंकारमयी शुद्धातम ही परम ब्रह्म परमातम है । सभी जीव भगवान आत्मा स्वयं सिद्ध शुद्धातम है ॥ स्व-पर का सत्स्वरूप जानना, यही भेद विज्ञान है । सर्वश्रेष्ठ और इष्ट जगत में, केवल सम्यग्ज्ञान है | अध्यात्म वाद का मूल यही तो तत्व ज्ञान कहलाता है। आत्म ज्ञान का बोध जागना, भव से पार लगाता है ॥ जीवन का यह परम लक्ष्य है, बनना खुद भगवान है। सर्वश्रेष्ठ और इष्ट जगत में, केवल सम्यग्ज्ञान है |
,
[५४