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जयमाल
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[अध्यात्म अमृत घर समाज परिवार से उसका, अब ना कोई नाता है। प्रेमभाव रहता है सबसे, सबसे हंसता गाता है । निर्विकार निस्पृह है निज में, पर से कुछ न कहता है। ज्ञानानंद निजानंद रत हो, ज्ञानी ज्ञायक रहता है । ध्रुव तत्व निज शुद्धातम का, जिसको दृढ़ श्रद्धान है। त्रिकाली पर्याय क्रमबद्ध, निश्चित अटल का ज्ञान है । निर्विकल्प हो ध्यान समाधि, अपने आप में रहता है। ज्ञानानंद निजानंद रत हो, ज्ञानी ज्ञायक रहता है ।। धन शरीर संसार से उसको, कोई न राग द्वेष है। कैसी क्या क्रिया होती है, कैसा उसका भेष है ॥ सहजानंद स्वरूपानंद हो, तत्वमसि ही कहता है ।
ज्ञानानंद निजानंद रत हो, ज्ञानी ज्ञायक रहता है । १०. आगम अनुभव से प्रमाण कर, सार तत्व को जाना है।
कथनी करनी छूट गई सब, धुवतत्व पहिचाना है । पर उसको पहिचान न सकता, स्वयं स्वयं को गहता है। ज्ञानानंद निजानंद रत हो, ज्ञानी ज्ञायक रहता है ।।
३. चारों तरफ धर्म की सेना, कर्म बने वरदान हैं ।
अभय स्वस्थ होकर के बैठो, जीत लिया मैदान है ॥ कुंभकरण वध हो ही गया है, जीता आतम राम है। धुवधाम में डटे रहो बस, इतना ही अब काम है ।। दृढता धर कर मारे जाओ, धर्म की जय जयकार करो। अब संसार में नहीं रहना है, कर्मोदय से नहीं डरो । सीता सती परम शान्ति का, सदा जपो तुम नाम है।
धुवधाम में डटे रहो बस, इतना ही अब काम है । ५. क्या होना है क्या होवेगा, इसका तनिक न सोच करो।
त्रिकाली परिणमन सब निश्चित, ध्रुव तत्व का ध्यान धरो॥ पर घर काल अनादि भटके, अब यह मिला मुकाम है। धुवधाम में डटे रहो बस, इतना ही अब काम है ॥ कुछ ही समय की बात रही है, समता शान्ति धरे रहो। जल्दी काल लब्धि आना है, ॐ नमः सिद्ध ही कहो ॥ जग से अब क्या लेना-देना, सबको राम-राम है। धुवधाम में डटे रहो बस, इतना ही अब काम है ॥ ज्ञानानंद जीतता जाता, निजानंद बढ़ता जाता । ब्रह्मानन्द सामने देखो, सहजानंद चला आता ॥ स्वरूपानंद में लीन रहो बस, यहीं पर अब विश्राम है।
ध्रुवधाम में डटे रहो बस, इतना ही अब काम है ।। ८. सर्वज्ञ प्रभु यह सामने बैठे, वस्तु स्वरूप को बता रहे ।
सिद्ध स्वरूप को देखो अपने, तारण स्वामी जता रहे ॥ ध्रुवतत्व शुद्धातम अपना, पूर्ण शुद्ध निष्काम है। धुवधाम में डटे रहो बस, इतना ही अब काम है ।। पर का सब अस्तित्व मिटाओ, पर्यायी भ्रम जाल है। पर की तरफ देखना ही बस, यही तो जग जंजाल है ॥
२४.ध्रुवधाम १. सिद्ध स्वरूपी शुद्धातम हो, अनन्त चतुष्टय धारी हो।
परमानन्द मयी परमातम, पूर्ण मुक्त अविकारी हो । न्यारे हो स्वराज्य लिया है, पाया निज ध्रुव धाम है।
धुवधाम में डटे रहो बस, इतना ही अब काम है ॥ २. क्या होता आता जाता है. इससे कोई न मतलब है।
क्रमबद्ध पर्याय से निश्चित, जरा न होवे गफलत है । रावण का ही वध होना है, जय बोलो श्रीराम है। धु वधाम में डटे रहो बस, इतना ही अब काम है ।।