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चतुर्योम्मेवः
४२१ वाले जम्भकास्त्र के द्वारा आकाश आच्छादित होता जा रहा है। मानों कल्प के अवसान के समय प्रचण्ड और अत्यन्त-भयङ्कर तूफानों से उलट-पुलट दिए गए हुए और नीले बादलों तथा बिजुलियों के कारण पिङ्गल हो उठी हुई कन्दराओं वाले विन्ध्य गिरि के शिखरों से व्याप्त हो उठा हो ॥ १४ ॥ . इत्यादि । नत एक एवायम् । 'एकदेशानाम्' इपि बहुवचनम् अत्र द्वयोरपि बहूनामुपकार्योपकारकत्वं स्वयमुत्प्रेक्षणीयम् ।
( यहाँ पर ) यही एकवितत किया गया है । ( इस प्रसंग में ) 'एकदेशानाम्' इस पद में बहुवचन को दोनों ही के प्रति बहुतों का उपकार्योपकारक भाव रूप स्वयं जान लेना चाहिए। अस्या एव प्रकारान्तरं प्रकाशयति
प्रतिप्रकरणं प्रौढ प्रतिभाभोगयोजितः । एक एवाभिधेयात्माबध्यमानः पुनः पुनः ॥७॥ अन्यूननूतनोल्लेखरसालङ्करणोज्ज्वलः।
बध्नाति वक्रतोद्भेदभङ्गोमुत्पादिताद्भुताम् ॥ ६ ॥ इसी ( प्रकरणवक्रता ) के अन्य ( चतुर्थ ) भेद का निरूपण करते हैं
प्रत्येक प्रकरण में ( कवि को ) प्रवुद्ध प्रतिभा की परिपूर्णता से सम्पादित, पूर्णतया नवीन ढङ्ग से उल्लिखित रसों एवम् अलङ्कारों से सुशोभित एक ही पदार्थ का स्वरूप बार-बार उपनिबद्ध होकर आश्चर्य को उत्पन्न करने वाले, वक्रता की सृष्टि से उत्पन्न सौन्दर्य को पुष्ट करता है ।। ७-८ ॥ - बध्नातोति अत्र निबिडयताति यावत् । काम-क्रतोद्भेदभङ्गीम्, वक्रभावाविभावात् शोभाम् । किंविशिष्टाम्-उत्पादिताद्भुताम् कन्दलितकुतूहलाम्। कः-एक एवाभिधेयात्मा, तदेव वस्तुस्वरूपम् । किं क्रियमाणम्-बध्यमानम् प्रस्तुनौचित्यचारुरचनागोचरतामापद्यमानम् । कथम्-पुनः पुनः वारं वारम् । का-प्रतिप्रकरणम् , प्रकरणे प्रकरणे स्थाने स्थान इति यावत् ।
यहाँ 'बांधता है' का अर्थ है दृढ़ या पुष्ट करता है। किसे-चक्रता के उभेद के कारण भङ्गिमा को अर्थात् बांकपन को सृष्टि से जन्य सोन्दर्य को ( पुष्ट करता है ) कैसी (भङ्गिमा) को? आश्चय को उत्पन्न करने वालो अर्थात कोतूहल को जन्म देनेवाली। (भङ्गिमा को पुष्ट करता है। ) कोन (पुष्ट करता है ) एक ही अभिधेय की आत्मा अर्थात् वही पदार्थ का स्वरूप। क्या किया जाता हवा? वर्णित किया