________________
तृतीयोग्मेषः
३६३ दो प्रकार का हो सकता है-(एक) वास्तविक ( सादृश्य ) तथा ( दूसरा ) काल्पनिक (सादृश्य) । उनमें वास्तविक (सादृश्य) उपमा आदि का विषय होता है । तथा काल्पनिक सादृश्य का आश्रय यहाँ ( उत्प्रेक्षालङ्कार में ) ग्रहण किया जाता है।
इसके बाद कुछ पङ्क्तियां लुप्त हैं । उन लुप्त पङ्क्तियों के अनन्तर विवेचन इस प्रकार प्रारम्भ होता हैं
प्रकारान्तरमस्याः प्रतिपादयति-उभयेन वा । सादृश्यलक्षणेनोभयेन वा कारणद्विनयेन संवलितवृत्तिना प्रस्तुततिरिक्तार्थान्तरयोजनम् । उत्प्रेक्षा-प्रकारस्य तृतीयस्याप्यस्य केनाभिप्रायेणोपनिबन्धनमित्याह-निर्वातिशयोद्रेकप्रतिपादनवाच्छया, वर्णनीयोत्कर्षोन्मेषसमर्पणाकाया । कथम्-तदिवेति तदेवेति वा द्वाभ्यां प्रकाराभ्याम् । तदिव अप्रस्तुतमित्र, तदलिशयप्रतिपादनाय प्रस्तुतसादृश्योपनिवन्धः । तदेवेत्यप्रस्तुतमेवेति तत्स्वरूपप्रसारणपूर्वकं प्रस्तुतस्वरूपसमारोपः। प्रस्तुतोत्कर्षधाराधिरोहप्रतिपत्तये तात्पर्यान्तरयोजनम् । कैर्वाक्यैरुत्प्रेक्षा प्रकाश्यते इत्याह-इवादिभिः । इवप्रभृतिभिः शब्दैर्यथायोगं प्रयुज्यमानै रित्यर्थः । न चेदिति पक्षान्तरमभिधत्ते-चाच्यवाचकसामाक्षिप्तस्वाथैः । तैरेव प्रयुज्यमानैः, प्रतीयमानवृत्तिभिर्वा ।।
इस उत्प्रेक्षा के अन्य ( तीसरे ) प्रकार का प्रतिपादन करते हैं अथवा दोनों के द्वारा । सादृश्य स्वरूप वाले दोनों के द्वारा अथवा दोनों ही कारणों से मिली हुई अवस्था द्वारा प्रस्तुत से भिन्न दूसरे अर्थ की योजना ( उत्प्रेक्षा ही होती है । उत्प्रेक्षा के इस तीसरे प्रकार का भी किस आशय से प्रयोग किया जाता है इसे बताते हैं-वर्ण्यमान के अतिशय के बाहुल्य का प्रतिपादन करने की इच्छा से अर्थात् जिसका वर्णन किया जा रहा है उसके उत्कर्ष की अधिकता को सम्पादित करने की अभिलाषा से। कैसे-'उसके सहश' अथवा 'वह ही' इन दोनों प्रकारों से । 'उसके सहश' का अर्थ है अप्रस्तुत के सदृश । अर्थात् उस प्रस्तुत के उत्कर्ष का प्रतिपादन करने के लिए प्रस्तुत के ( अप्रस्तुत के साथ ) सादृश्य का वर्णन किया जाता है। वह ही' का अर्थ है अप्रस्तुत ही अर्थात् उस (अप्रस्तुत) के स्वरूप को विस्तृत कर प्रस्तुत के स्वरूप का समारोप । प्रस्तुत के उत्कर्ष को चरमसीमा पर पहुँचाने के लिए अन्य तात्पर्य की योजना उत्प्रेक्षा होती है। किन वाक्यों के द्वारा उत्प्रेक्षा प्रकाशित की जाती है-इव आदि के द्वारा। यथासम्भव प्रयुक्त किए. जाने वाले इव इत्यादि शब्दों के द्वारा (उत्प्रेक्षा प्रकाशित की जाती है)। परि(वादि)प्रयुक्तहरतो दूसरा का