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१४. हेतु, १५. सूक्ष्म तथा १६. लेश अलङ्कार
हेतु सूक्ष्म, और लेश की अलङ्कारता का खण्डन करते हुए वे भामह की— हेतुश्व सूक्ष्मो लेशोऽथ नालङ्कारतया मतः । समुदायाभिधानस्य वक्रोक्त्यनभिधानतः ॥
इस उक्ति को समर्थन देते हैं और कहते हैं यहाँ किसी वैचित्र्य को प्रस्तुत न करने के कारण अलङ्कारता सम्भव नह । साथ ही दण्डी के उदाहरणों को प्रस्तुत कर कहते हैं कि यहाँ तो केवल वस्तु स्वभाव ही रमणीय है । अतः वह श्रलङ्कार्य है, अलङ्कार नहीं ।
१७. उपमारूपक
कुन्तक उपमारूपक की भी अलङ्कारता का खण्डन करते हैं । परन्तु किस ढंग से, यह कहना कठिन है । डा० डे ने केवल इतना हो अंश मुद्रित किया है कि— केचिदुपमारूपकाणामलंकरणत्वं मन्यन्ते, तदयुक्तम् अनुपपद्यमानत्वात् ।"
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