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________________ वक्रोक्तिजीवितम् मनोहारिणा वास्तव स्थितितिरोधान प्रवणेन निजावभासोद्भासिततत्स्वरूपेण तत्कालोल्लिखित इव वर्णनीयपदार्थ परिस्पन्दमहिमा प्रतिभासते, येन विधातृव्यपदेशपात्रतां प्रतिपद्यन्ते कवयः । तदिदमुक्तम् । २८४ तो इस प्रकार केवल सत्तामात्र से प्रतीत होने वाले पदार्थ के सौन्दर्यातिशय का प्रतिपादन करने वाले किसी लोकोत्तर वैचित्र्य विशेष का वर्णन किया जाता है, जिससे ( पदार्थ की ) वास्तविक सत्ता को आच्छादित करने में तत्पर एवं अपूर्व सौन्दर्य के कारण चित्ताकर्षक अपने प्रकाश से देदीप्यमान उसके स्वरूप के द्वारा तत्काल ही निर्मित की गई सी वर्णन किये जाने वाले पदार्थ के स्वभाव की महत्ता झलकती है जिससे कि कविजन विधाता की सज्ञा प्राप्त कर लेते हैं । इसी लिए ऐसा कहा गया है कि - अपारे काव्यसंसारे कविरेव प्रजापतिः । यथास्मै रोचते विश्वं तथेदं परिवर्तते ॥। ११ ॥ ( इस ) अनादि एवं अनन्त ( अपार ) काव्यसंसार में ( उसका निर्माता) केवल कवि ही विधाता है । जैसी उसकी रुचि होती है उसी प्रकार वह इस जगत् को परिवर्तित कर देता है । ११ ॥ सैषा सहजाहार्यभेदभिन्ना वर्णनीयस्य वस्तुनो द्विप्रकारा वक्रता । तदेवमाहार्या येयं सा प्रस्तुतविच्छित्तिविधाप्यलंकार व्यतिरेकेण नान्या काचिदुपपद्यते । तस्माद् बहुविधतत्प्रकारभेदद्वारेणात्यन्त विततव्यवहाराः पदार्थाः परिदृश्यन्ते । यथा ऐसी वह वर्णनीय वस्तु की वक्रता स्वाभाविक ( अपने प्रतिभाजन्य ) एवं आहार्य अर्थात् (अपने व्युत्पत्तिजन्य) दोनों भेदों से युक्त होने के कारण दो प्रकार की होती है तो इस प्रकार ( उनमें ) जो यह व्यत्पत्तिजन्य ( वक्रता ) है वह वर्ण्यमान पदार्थ के सौन्दर्य को उत्पन्न करने वाली होकर भी अलङ्कार से भिन्न और कुछ नहीं हो पाती। इसीलिए अनेकों प्रकार के उसके भेदप्रभेद के द्वारा बहुत ही ज्यादा विस्तृत व्यवहार वाले पदार्थ दिखाई पड़ते हैं । जैसे अस्याः सर्गविधौ प्रजापतिरभूच्चन्द्रो नु कान्तद्युतिः शृङ्गारैकरसः स्वयं नु मदनो मासो नु पुष्पाकरः । वेदाभ्यासजडः कथं न विषयव्यावृत्तकौतूहलो निर्मातुं प्रभवेन्मनोहर मिदं रूपं पुराणो मुनिः ।। १२ ।।
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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