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वक्रोक्तिजीवितम्
जहाँ रूढि के द्वारा सम्भव न हो सकने वाले धर्म के अध्यारोप की गर्भता प्रतीत होती है ( उसे रूढिवैचित्र्यवक्रता कहते हैं ) । रोहण और रूढि पर्याय हैं ऐसा मानकर शब्द का वह धर्म जिससे कि उसका व्यापार ( प्रयोगक्षेत्र ) नियत होता है रूढि कहा जाता है। वह नियतवृतिता दो प्रकार की होती है - सामान्यवृति का नियत होना याने नियतसामान्यवृत्तिता और विशेष वृप्ति का नियत होना अर्थात् नियतविशेष वृत्तिता । अतः रूढि शब्द के द्वारा रूढिप्रधान शब्द का ग्रहण होता है क्योंकि धर्म और धर्मी के बीच लक्षणा से अभेद करने का व्यवहार प्रायः दिखाई देता है ।
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जहाँ अर्थात् जिस विषय में रूढि शब्द का असम्भाव्य अर्थात् ( रूढि शब्द के द्वारा ) सम्भव न कराया जा सकने वाला जो धर्म अर्थात् कोई स्वभाव उसका अध्यारोप अर्थात् प्रतीति कराना है गर्भ अर्थात् अभिप्राय जिसका वह हुआ तथोक्त ( असम्भाव्य धर्म के अव्यारोप का गर्भ ) उसका भाव हुआ ( असम्भाव्य धर्म के अध्यारोप की गर्भता अर्थात् रूढि शब्द के द्वारा सम्भव न कराये जा सकने वाले पदार्थ के धर्मं विशेष की प्रतीति कराने वाले अभिप्राय से युक्त ) वह जहाँ प्रतीत अर्थात् प्रतिपादित होती है । अथवा ( जहाँ ) विद्यमान धर्म के अतिशय के आरोप की गर्भता प्रतीत होती है वहाँ भी रूढवैचित्र्यवक्रता होती है ।
यत्र से सम्बन्ध का ग्रहण किया जायगा । अथवा जहाँ पर वर्तमान धर्म के अतिशय्य के आरोप का कुक्षीकार प्रतीत होता है । जो सत् और धर्म दोनों हों उसे सदूधर्म कहते हैं अर्थात् उसमें विद्यमान पदार्थ का स्वभाव, उसमें जिस किसी अभूतपूर्व आतिशय्य का अर्थात् विस्मयकारी स्वरूप के महत्त्व का आरोप या समर्पण ही कुक्षीकृत या अभीष्ट होकर आता है उस तरह से कहे हुए उसके भाव को वह संज्ञा दी जायगी । अथवा वह जिसमें प्रतीत होता है ( वहाँ रूढिवैचित्र्यवक्रता होती है ) अब प्रश्न उठता है कि किस कारणवश तो यहाँ पर असामान्य तिरस्कार और वांछनीय उत्कर्ष का प्रतिपादन करने की इच्छा से ( ऐसा किया जाता है ) । लोकोत्तर अर्थात् सबसे अधिक जो तिरस्कार याने अपमानित करना है ( उसे ) और जो प्रशंसनीय या वाञ्छनीय उत्कर्षं यानी व्यतिरेक है उन दोनों को कहने की या व्यक्त करने की इच्छा अर्थात् बताने की अभिलाषा के कारण ( ऐसा किया जाता है ) । यह अभिधित्सा किसकी होती है ?१- वाच्य की । रूढिशब्द का वाच्य अर्थात् जो अभिधा के द्वारा प्रतिपाद्य अर्थ है ( उसकी ) । तो वह कोई लोकोत्तर ( वस्तु ) रूढिवैचित्र्यवक्रता के नाम से कही जाती है। रूढिशब्द की इम
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