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वक्रोक्तिजीवितम् एवमेतां वर्णविन्यासवक्रतां व्याख्याय तामेवोपसंहरतिवर्णच्छायानुसारेण गुणमार्गानुवर्तिनी। वृत्तिवैचित्र्ययुक्तेति सैव प्रोक्ता चिरन्तनैः॥५॥ इस प्रकार इस ( वर्गविन्यासवक्रता ) की व्याख्या करने के अनन्तर ( अब ) उसी का उप संहार करते हैं
( अक्षरों की ( श्रव्यत्वादिगुणसम्पति रूप ) शोभा के अनुसार (माधुर्यादि) गुणों एवं ( सुकुमारादि) मार्गों का अनुवर्तन करने वाली उसी ( वर्णविन्यासवक्रता ) को चिरन्तनों ( उद्भट आदि आचार्यों ) ने ( उपनागरिका आदि ) वृतियों के विचित्रभाव से समन्वित बताया है ।। ५ ॥
वर्गानामक्षराणां या छाया कान्तिः श्रव्यतादिगुणसंपत्तया हेतुभूतया यदनुसरणमनुसारः प्राप्यस्वरूपानुप्रवेशस्तेन। गुगान् माधुर्यादोन मार्गाश्च सुकुमारप्रभृतीननुवर्तते या सा तथोक्ता। तत्र गुणानामान्तरतम्यात् प्रथममुपन्यसनम्, गुणद्वारेणैव मार्गानुसरणोपपत्तेः तदयमत्रार्थः-यद्यप्येषा वर्णविन्यासवक्रता व्यञ्जनच्छायानुसारेणैव, तथापि प्रतिनियतगुणविशिष्टानां मार्गाणामनुवर्तनद्वारेण यथा स्वरूपानुप्रवेशं विदवाति तया विधातव्येति । तत एव च तस्यास्तन्नि बन्धनाः प्रवितताः प्रकाराः समुल्लसन्ति । चिरन्तनः पुनः सैव स्वातन्त्र्येण वृत्तिवैचित्र्ययुक्तेति प्रोक्ता । वृत्तिनामुपनागरिकादीनां यद् वैचित्र्यं विचित्रभावः स्वनिष्ठसंख्याभेदभिन्नत्वं तेन युक्ता समन्वितेति चिरन्तनः पूर्वसूरिभिरभिहता । तदिदमत्र तात्पर्यम्यदस्याः सकलगुणस्वरूपानुसरणसमन्वयेन सुकुमारादिमार्गानुवर्तनायत्तवृत्तः पारतन्त्र्यमपरिगणितप्रकारत्वं चैतदुभयमप्यवश्यंभावि तस्मादपारतन्त्र्यं परिमितप्रकारत्वं चेति नातिचतुरस्त्रम । ___ वर्णों अर्थात् अक्षरों को जो छाय। अर्थात् श्रव्यत्व आदि गुणों की सम्पत्ति रूप कान्ति है, कारणभूत उस (कान्ति ) के द्वारा जो अनुसरण अर्थात् अनुगम है । प्राप्त करने योग्य स्वरूप में प्रवेश, उसके द्वारा गुणों अर्थात् माधुर्यादि का तया मार्गों अर्थात् सुकुमार आदि का जो अनुसरण करती है वह हुई ययोक्त ( गुणों एवं मार्गों का अनुसरण करने वाली )। इस कारिका में जो गुण शब्द का प्रयोग पहले तथा मार्गों का बाद में किया गया है उसका कारण बताते हैं कि ) गुणों के अत्यन्त निकट वाले होने के कारण उनका पहले ग्रहण किया गया है। ( तथा मार्गों का बाद में क्योंकि ) गुणों के माध्यम से ही मार्गों का अनुवर्तन युक्तियुक्त होता है।