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द्वितीयोन्मेषः
१७५ इयमपरा वर्णविन्यासवक्रता त्रिधा त्रिभिः प्रकारैरुक्तेति 'च'शब्देनाभिसम्बन्धः। के पुनरस्यास्त्रयः प्रकारा इत्याह-वर्गान्तयोगिनः स्पर्शाः। स्पर्शाः कादयो मकारपर्यन्ता वर्गास्तदन्तैः कारादिभियोगः संयोगो येषां ते तथोक्ताः, पुनः पुनर्बध्यमानाः-प्रथमः प्रकारः । त-ल-नादयः तकार-लकार नकार-प्रभृतयो द्विरुक्ता द्विरुच्चारिता द्विगुणाः सन्तः, पुनः पुनर्बध्यमानाः-द्वितीयः । तद्व्यतिरिक्ताः शिष्टाश्च व्यञ्जनसज्ञा ये वर्णास्ते रेफप्रभृतिभिः संयुक्ताः पुनः पुनर्बध्यमानाः-तृतीयः । स्वल्पान्तराः परिमितव्यवहिता इति सर्वेषामभिसम्बन्धः । ते च कीदृशाः- प्रस्तुतौचित्यशोभिनः । प्रस्तुतं वर्ण्यमानं वस्तु तस्य यदौचित्यमुचितभावस्तेन शोभन्ते ये ते तथोक्ताः । न पुनर्वर्णसावर्ण्यव्यसनितामात्रेणोपनिबद्धाः प्रस्तुतौचित्यम्लानकारिणः । प्रस्तुतौचित्यशोभित्वात् कुत्रचित्परुषरसप्रस्तावे तादृशानेवाभ्यनुजानाति । ____ यह दूसरी वर्णविन्यासवक्रता तीन भेदों से कही गई है-ऐसा सम्बन्ध ( इस कारिका में प्रयुक्त) 'च' शब्द से है। इस (दूसरी वर्णविन्यासवक्रता) के आखिर वे तीन भेद हैं कौन कौन से यह बताते हैं-वर्ग के अन्त ( अन्तिम वर्ण से ) संयुक्त स्पर्श ( वर्ण)। 'क' से लेकर 'म' पर्यन्त के वर्ग (अर्थात् कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग एवं पवर्ग) उनके अन्त कारादि (क्रम से ङ, न, ण, न एवं म) से जिनका संयोग हो, वे हुए तथोक्त ( वर्गान्त से संयुक्त स्पर्श वर्ण), ( वे जहाँ ) बार बार ( थोड़े अन्तर से) उपनिबद्ध ( किये जाते ) हैं-(वह) पहला भेद (हुआ )। त, ल, न, बादि अर्थात तकार, लकार एवं नकार अदि ( वर्ण) द्विरुक्त अर्थात् दो बार उच्चारित होकर, दुगुने होकर, बार बार (जहां थोड़े अंतर से) उपनिबद्ध ( होते ) हैं, (वहाँ ) दूसरा भेद (हुआ )। उनसे भिन्न शेष सभी व्यञ्जन सज्ञा वाले जो वर्ण हैं वे रेफादि ( रकारादि ) से संयुक्त रूप में बार-बार (थोड़े अंतर से जहाँ ) उपनिबद्ध होते हैं । ( वह ) तीसरा ( भेद हुआ )। (इन) सभी (भेदों में प्रयुक्त व्यञ्जनों) का स्वल्प अंतर वाले अर्थात् परिमित व्यवधान वाले (होकर ही पुनः पुनः प्रयुक्त होने ) के साथ सम्बन्ध है । ( अर्थात् सभी भेदों में बताये गये क्रम के अनुसार थोड़े ही थोड़े व्यवधान से बार-बार आवृत्ति होनी चाहिए)। वे वर्ण कैसे होने चाहिए-प्रस्तुत के बौचित्य से शोभित होने वाले । प्रस्तुत का अर्थ है वर्ण्यमान वस्तु उसका जो औचित्य अर्थात उचितभाव है उसके द्वारा जो शोषित होते हैं वे हुए तथोक्त (प्रस्तुत के बौचित्य से शोभित होने वाले वर्ण)। (कहने का अभि