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वक्रोक्तिजीवितम्
यद्यपि सर्वेषामुदाहरणानाम बिकल काव्यलक्षण परिसमाप्तिः सम्भवति तथापि यत्प्राधान्येनाभिधीयते स एवांशः प्रत्येकमुद्रिक्कतया तेषां परिस्फुरतीति सहृदयैः स्वयमेवोत्प्रेक्षणीयम् ।
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यद्यपि सभी उदाहरणों में ( जिन्हें कि मैंने अभी तक उद्धृत किया है ) काव्य के समस्त लक्षणों की प्राप्ति सम्भव हो सकती है, फिर भी जिसका प्राधान्यरूप से वर्णन किया जाता है ( अर्थात् लक्षण के जिस अंश को वह उदाहरण होता है) वही अंश प्रधान रूप से उनमें परिस्फुरित होता है ऐसा सहृदयों को स्वयं समझ लेना चाहिए ।
एवं काव्यसामान्यलक्षणमभिधाय तद्विशेषलक्षणविषय प्रदर्शनार्थं मार्गभेदनिबन्धनं त्रैविध्यमभिधत्ते
इस प्रकार काव्य के सामान्य लक्षण को बताकर उसके विशेष लक्षण का विषय बताने के लिए मार्ग-भेद के कारण होने वाले विध्य का कथन करते हैं
सम्प्रति तत्र ये मार्गाः कविप्रस्थानहेतवः । सुकुमारो विचित्रश्च मध्यमचोभयात्मकः || २४ ॥
उस काव्य ) में कवि की प्रवृत्ति के कारणभूत जो सुकुमार, विचित्र और उभयात्मक मध्यम मार्ग सम्भव हैं, उन्हें बताते हैं || २४ ॥
तत्र तस्मिन् काव्ये मार्गाः पन्थानस्त्रयः सम्भवति । न द्वौ न चत्वारः, स्वरादिसंख्यावत्तावतामेव वस्तुतस्तज्ज्ञैरुपलम्भात्। ते च कीदृशाःकविप्रस्थानहेतवः । कवीनां प्रस्थानं प्रवर्त्तनं तस्य हेतवः, काव्यकरणस्य कारणभूताः । किमभिधानाः - सुकुमारो विचित्रश्च मध्यमचेति । क्रीदृशो मध्यमः - उभयात्मकः । उभयमनन्तरोक्तं मार्गद्वयमात्मा यस्येति विग्रहः । छायाद्वयोपजीवीत्युक्तं भवति । तेषां च स्वलक्षणावसरे स्वरूपमाख्यास्यते ।
वहाँ अर्थात् उस काव्य में तीन मार्ग अर्थात् रास्ते सम्भव हैं । न दो, न चार; स्वर आदि की संख्या के समान उतने ( अर्थात् तीन ) के ही वास्तव में काव्यमर्मज्ञों द्वारा अनुभव किये जाने से । और वे हैं कैसेकवि प्रस्थान के हेतु । कवियों का प्रस्थान अर्थात् ( काव्य करने की ) प्रवृत्ति उसके हेतु, अर्थात् काव्य करने के कारणभूत । उनके क्या नाम हैंसुकुमार मार्ग, विचित्रमार्ग और मध्यममार्ग । मध्यममार्ग कैसा है
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