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वक्रोक्तिजीवितम्
बसम्भाव्यमान उस ( दुःशासन ) की रक्षा की पात्रता रूप अकिञ्चित्करता को गभित कर 'इसकी रक्षा करो' इस प्रकार उपहास किया जाता है ।
पदपूर्वार्धवक्रताया उपचारवक्रत्वं नाम प्रकारान्तरं विद्यतेयत्रामूर्तस्य वस्तुनो मूर्तद्रव्याभिधायिना शब्देनाभिधानमुपचारात् । यथा
पदपूर्वार्द्धवक्रता का उपचारवक्रता नामक ( चतुर्थ ) अवान्तर भेद भी है । जहां पर अमूर्त वस्तु का मूर्त द्रव्य का अभिधान करने वाले शब्द के द्वारा उपचार ( अर्थात् सादृश्य ) के बलपर कथन किया जाता है ( वहाँ उपचार-वक्रता होती है । ) जैसे
निष्कारणं निकारकणिकापि मनस्विनां मानसमायासयति । यथा
हस्तापचेयं यशः।
'अकारण ही मानहानि की कणिका भी (अर्थात् अत्यल्प मानहानि भी) भनस्वी पुरुषों के हृदय को पीड़ित कर देती है । और जैसे
'हाय के द्वारा एकत्रित करने योग्य यश'
'कणिका' शब्दो मूर्तवस्तुस्तोकार्थाभिधायी स्तोकत्वसामान्योपचारादमर्तस्यापि निकारस्य स्तोकाभिधानपरत्वेन प्रयुक्तस्तद्विदाह्लाद. कारित्वाद्वक्रतां पुष्णाति । 'हस्तापचेयम्' इति मूर्तपुष्पादिवस्तुसंभविसंहतत्वसामान्योपचारादमूर्तस्यापि यशसो हस्तापचेयमित्यभिधानं वक्रत्वमावहति ।
( इन दोनों उदाहरणों में पहले उदाहरण में प्रयुक्त ) 'कणिका' शब्द मूर्तवस्तु की अल्पता के अर्थ का अभिधान करने वाला ( होते हुए भी) स्वल्पता रूप सामान्य के कारण उपचार से ( सादृश्यमूला लक्षणा द्वारा ) अभूतं भी मानहानि की अल्पता के कथन रूप से प्रयुक्त होकर काव्यतत्वज्ञों को आह्लादित करने के कारण वक्रता (विचित्रता ) का पोषण करता है। ( इस प्रकार अमूर्त वस्तु की अल्पता का अभिधान 'कणिका' शब्द के बारा उपचार से होता है, अतः यहाँ 'उपचारवक्रता' मानी जायगी ) ।