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प्रथमोन्मेषः
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द्वारा पुरिस्फुरित होते हुए पदार्थ, अथबा अवसर प्राप्त प्रकरण के योग्य किसी उत्कर्षविशेष से समाच्छन्न स्वभाव वाले होकर ( पदार्थ कवि के) कथन के लिए अभिप्रेत ( वस्तु ) की विधेयता के कारण अभिधेयता को प्राप्त कर, उस प्रकार के विशेष ( अर्थ ) के प्रतिपादन में समर्थ शब्द द्वारा अभिधीयमान होकर ( सहृदयों के ) हृदयों को चमत्कृत करने लगते
संरम्भः करिकोटमेघशकलोदेशेन सिंहस्य यः सर्वस्यैव स जातिमात्रविहितो हेवाकलेशः किल । इत्याशाद्विरदक्षयाम्बुदघटाबन्धेऽप्यसंरब्धवान्
योऽसौ कुत्र चमत्कृतेरतिशयं यात्वम्बिकाकेसरी ॥२८॥ करिकीटरूपी मेघखण्ड को लक्ष्य करके जो सिंह का अभिनिवेश है यह तो सभी (सिंहों) का केवल जातिजन्य साधारण स्वभाव है अतः जो यह भगवती दुर्गा का ( वाहनभूत ) सिंह साधारण दिग्गजरूपी प्रलयमेषों की घटारचना के प्रति भी अभिनिवेशहीन है ( तो फिर भला) और वह कहाँ चमत्कार के उत्कर्ष को प्राप्त कर सकेगा ॥ २८ ॥
अत्र करिणां 'कीट' व्यपदेशेन तिरस्कारः, तोयदानो च 'शकल'शब्दाभिधानेनानादरः, 'सर्वस्य' इति यस्य कस्यचितुच्छतरप्रायस्ये त्यवहेला, जातेश्च 'मात्र शब्दविशिष्टत्वेनावलेपः, हेवाकस्य 'लेश'शब्दाभिधानेनाल्पताप्रतिपत्तिरित्येते विवक्षिताईकवाचकत्वं द्योतयन्ति । 'घटाबन्ध-शब्दस्य प्रस्तुतमहत्त्वप्रतिपादनपरत्वेनोपात्तस्तभिवन्धनतां प्रतिपद्यते । विशेषाभिधानाकाक्षिणः पुनः पदार्थस्वरूपस्य तत्प्रतिपादनपरविशेषणशून्यतया शोभाहानिरुत्पद्यते । यथा
यहाँ ( उक्त पद्य में ) हाथियों का 'कीट' संज्ञा के द्वारा तिरस्कार (किया गया है), और बादलों का 'शकल' शब्द के द्वारा अभिधान कर अनादर ( किया गया है)। 'सर्वस्य' इस ( पद के प्रयोग द्वारा) जिस किसी अत्यधिक तुच्छ) हाथी का भी ऐसा स्वभाव होता है।) इस प्रकार कहकर अवहेलना ( की गई है), और जाति का 'मात्र' शब्द को विशेषण बनाकर ( अम्बिकाकेसरी के ) घमण्ड ( अवलेप) की (सूचना दी गई है) तथा हेवाक का लेश शब्द के द्वारा अभिधान कर अल्पता की प्रतीति (कराई गई है ) इस प्रकार ये (सभी शब्द ) विवमित वर्ष की केवल