________________
श्री जम्बूस्वामी चरित्र केवली और होंगे; जिनमें से दो केवली तो हो चुके हैं, क्या अंतिम केवली का जीव मेरी कुक्षी को पवित्र करनेवाला है?" इत्यादि अनेक प्रकार की भावनाएँ उनके मन में उछल ही रही थीं कि रात्रि अस्त हो गई एवं सहस्रकलायुक्त भानु उदित हो उठा। सेठानीजी ने नित्यकर्म से निवृत्त हो सेठजी को प्रणाम किया और अपने पांच मंगलमयी स्वप्नों का वृत्तांत कहकर उनका फल जानने की अभिलाषा व्यक्त की।
पंच स्वप्नों का समाचार सुनते ही सेठ का मन-मयूर वैसे ही आनंद से नाच उठा, जैसे मेघों को देखते ही मयूर मधुर-मधुर शब्दों के गान सहित नाचने लगते हैं। वे उसीसमय अपनी सेठानी सहित जिनमंदिर को गये। वहाँ श्री जिनेदव के दर्शन कर भक्तिभाव से पूजन की। उसके बाद से श्री वैश्वराज आदि मुनिवरों के पास गये। वहाँ मुनिवर वृन्दों के दर्शन कर उन्हें नमस्कार करके उनके चरणों में बैठ गये। जब मुनिराजों का ध्यान भंग हुआ, तब विनयपूर्वक पंच स्वप्नों का वृत्तांत कहकर फल पूछने लगे - "हे स्वामिन् ! हे अवधिज्ञान नेत्र के धारक मुनिवर! आज हम इन पाँच शुभ स्वप्नों का फल जानना चाहते हैं।"
मुनिराज अवधिज्ञान से स्वप्न-फल जानकर हर्षित चित्त हो कहने लगे - “हे राज्यश्रेष्ठि ! जाम्बूवृक्ष देखने से पता चलता है कि तुम्हारे कामदेव-सदृश सुन्दर पुत्र होगा। हे भव्य ! तुम बड़े पुण्य-प्रतापी हो। तुम अंतिम केवली चरम शरीरी पुत्र के पिता बननेवाले हो, जो स्व-पर का कल्याण करके तद्भव-मोक्षगामी होगा। धूम्ररहित अग्नि देखने से तुम्हारा पुत्र कर्मरूपी ईंधन को जलाने वाला होगा। धान्ययुक्त खेत देखने से वह लक्ष्मीवान होगा। कमल-सहित सरोवर देखने से वह भव्य जीवों के पापरूपी संताप को शांत कर आनंद करनेवाला होगा और चंचल समुद्र देखने से संसार-समुद्र के पार पहुँचेगा और भव्य जीवों को सुख प्राप्ति के लिए धर्मामृत की वर्षा करेगा। __ पूज्य मुनिवर से स्वप्नों का फल ज्ञात कर श्रेष्ठी आनंदित हुआ। सभी मुनिवर वृन्दों को त्रियोगपूर्वक नमस्कार कर वे दोनों अपने घर आये और प्रेम पूर्वक गृहस्थोचित भोगोंपभोगों को भोगते हुए रहने लगे। अपने पुण्योदय से विद्युन्माली देव का जीव स्वर्ग से जिनमती