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श्री जम्बूस्वामी चरित्र महाराजा श्रेणिक भी समस्त इष्टजनों, श्रेष्ठजनों एवं नगरजनों के साथ श्रेष्ठ हाथी पर आसीन हो दल-बल सहित श्री वीर प्रभु के दर्शनार्थ विपुलाचल की ओर चल रहे हैं, परन्तु वे आज अत्यंत आश्चर्यचकित हैं, उन्हें ऐसा लग रहा है कि मानो उन्होंने नगर एवं उपवन प्रथम बार ही देखा हो। वे बारंबार विस्मय पूर्वक महावत से पूछते हैं - “हे महावत! तुम कौन से नगर में ले चल रहे हो? इस नगर को तो मैंने कभी देखा ही नहीं, इतनी सुगंधित वायु किस उपवन से आ रही है? यह पथ स्फटिकमणि के समान स्वच्छ क्यों दिख रहा है? ये पक्षीगण प्रमुदित हो मधुर स्वर से गायन क्यों कर रहे हैं? ये मयूरगण असमय में ही आनंद-विभोर हो नृत्य क्यों कर रहे हैं? अहो! यह कोयल की मीठी मधुर कूक कहाँ से आ रही है? अरे! अरे! महावत! देखो तो आम्रवृक्ष पीठे, स्वादिष्ट एवं लोचनानंद आमों के गुच्छों से शोभ रहे हैं, अरे, चारों ओर छहों ऋतुओं के फल-फूल ? ये बिना ऋतु के ऋतुराज वसंत कैसे आ गए ?"
सभी नगरवासी भी आश्चर्यचकित हैं, परन्तु राजा के साथ-साथ सभी चल रहे हैं। महावत भी सोचता है - "अरे! मैं कहीं अन्य रास्ते पर तो नहीं आ गया हूँ? यह सब क्या है? ऐसा तो मैंने भी कभी नहीं देखा।"
महावत चारों ओर अच्छी तरह देखता है, फिर उसे ऐसा निर्णय होता है - “नहीं, नहीं, यही सत्य मार्ग है।"
फिर महावत राजा को कहता है - "हे राजन् ! यह वही नगर एवं उपवन है, जहाँ आप प्रतिदिन आया करते हैं। आज ये नगर एवं उपवन भी श्री वीरप्रभु की केवल्य-लक्ष्मी का आनंद से स्वागत कर रहे हैं, इसलिए ही मनमोहक हरियाली फल-फूल एवं सभी पक्षीगण एकत्रित हुए हैं।"
वन में से वनराज सिंह, वाघ, हाथी, घोड़ा, सियार, चीता, वानर आदि और कूकर, बिल्ली, चूहा, सर्प, अजगर आदि सभी जाति विरोधी और अविरोधी थलचर पशु भी वैर-विरोध छोड़कर शांतभाव से प्रभु के दर्शनार्थ चले आ रहे हैं। काग, चिड़िया, मोर, कबूतर, तीता आदि सभी नभचर पक्षी भी आनंद से उड़ते हुए प्रभु के