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११ सांकेतिक काव्यो की समझ । ओ०, औ० औसवाल भ० भगवान् ,भट्टारक का० कारितम्
भट्टा. भट्टारक क. कृष्णपक्ष
भण. भणसाली ज्ञाति, जाति म. महाजन गो० गोष्ठिक
महं० महत्तर, मंत्री ४०, ठा० ठकुर, ठाकुर म. मंत्री दे० देवी . ल०, लघु० लघुशाखीय निक निर्मित
वव्य,व्यव. व्यवहारी परि, परी० परीक्षक गोत्र वा० वास्तव्य पं० पन्यास
व्या० व्यापारी पुत्र, पुत्री पूर्णिः पूर्णिमागच्छ
शाह प्र० प्रतिष्ठितम्
शु० शुक्लपक्ष प्रा. प्राग्वाट
श्रेष्ठी, सेष्ठि विम्ब
| सं० संघवी, संन्ताभं० भंडारी
नीय, संवत्
बृहत्
शा०
वि०
"Aho Shrut Gyanam"