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अशुद्ध
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१७४
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१९०
पदावतंसं प्राग्वाठे असरूप षडेरक स्पष्ट हैं विग्व अचलगच्छे श्रीश्रोमाल बन रहा रहा है टही कुबाई ম| मा० मुनिसिंह जीवितस्वामि श्रीश्रीमालज्ञातिय घडसिंह
२०१
पृष्ठ सं०
१५० पट्टावतंस १५८ प्राग्वाटे १६९ जसरूप पं(ख)डेरक स्पष्ट है बिम्ब
१९४ अंचलगच्छे
१९८ श्रीश्रीमाल वन रहा है २०४ टहीकु बाई भा०
२१५ मा०
२१९ मुनिसिंह
२२१ जीवितस्वामी. २२३ श्रीश्रीमालज्ञातीय २२७ घडसिंह २२८
२२९ मांडण श्रेयार्थ २३१ जीवितस्त्राभी २३६
२०७
n , te » »
भांडन
२३१
अवार्थ
जीवितस्वामि
"Aho Shrut Gyanam"